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QAID

यह ख़त अपने सबसे अज़ीज़ के नाम....


सबसे पहले तो माफ़ करना
बहुत देर के बाद कुछ लिख रहा हूँ
वो क्या है न कि बिन जवाब के
कुछ लिखना बहुत मुश्किल होता है ,
लेकिन अब लिखने की वजह कुछ और है
अब कहने को बात कुछ और है
अब मेरे इस मुल्क की हवा कुछ और है
अब मेरे इस शहर के हालात कुछ और हैं ,
अब यहाँ की गलियाँ पहले जैसे आबाद नहीं हैं
यहाँ के लोग पहले जैसे आज़ाद नहीं हैं
हम सब यहाँ अब क़ैद में हैं ।

अगर कुछ आज़ाद है तो वो सब परिंदे
जिन्हें हम क़ैद में रखते थे
तुम्हें याद है वो पिंजरे में क़ैद परिंदा
जो तुम्हारे पड़ोस के एक घर में था
जिसे देख तुम अक्सर कहती थी
कि वो मुझसा दिखता है
ख्यालों से आज़ाद लेकिन हालातों में क़ैद
अब वो परिंदा खुले आसमान में आज़ाद है
और उस घर के लोग सब क़ैद में हैं
हम सब यहाँ अब क़ैद में हैं ।

मुझे आज भी याद है
बारिश के बाद तुम वो दूर हल्के-हल्के
धुंदले दिखने वाले पहाड़ देखा करती थी
अब हमारी छत से वो पहाड़ हर वक़्त दिखते हैं
उनके ऊपर गिरी वो सफ़ेद बर्फ भी दिखती है ,
कल तो बारिश के बाद सतरंगी इंद्रधनुष भी दिखा था
एक दम पास और एक दम साफ़
जैसे हाथ से छूह कर उसके रंग चुरा लूँ
अब तो वो सब पहाड़ आज़ाद हैं
वो सब रंग आज़ाद हैं, हमारी नज़र आज़ाद है
लेकिन हमारे हाथ अब क़ैद में हैं
हम सब यहाँ अब क़ैद में हैं ।

तुम्हें इस शहर के शोर से बहुत नफरत थी न
अब वो शोर कहीं गुम गया है
अब चारों और एक मधुर सी चुप है
अब तो बस हवा का संगीत है
और पेड़ों के पत्तों की आवाज़ ,
वो तुम्हारे घर के पास वाला फाटक
जो हर बार बंद ही मिलता था
अब वो हर वक़्त खुला है
लेकिन अब कोई भी वहां से गुजरता नहीं
अब इस शहर के सब रास्ते आज़ाद हैं
लेकिन सबके कदम अब क़ैद में हैं
हम सब यहाँ अब क़ैद में हैं ।

वो हर चीज़ वो हर शह अब आज़ाद है
जो तुम्हें दिल से प्यारी थी
पेड़, पंछी, हवा और सारी कुदरत
सिवा मेरे जो अब भी ख्यालों से आज़ाद
और हालातों की क़ैद में है
ख़ैर, यहाँ की बात छोड़ो तुम अपना बताओ
तुम ठीक हो न , तुम आज़ाद हो न
तुम तो किसी क़ैद में नहीं हो न
तुम तो बाहर निकल सकती हो न
तुम तो आज़ाद घूम सकती हो न
पंछिओं को छूह सकती हो न
पेड़ों से बात सकती हो न
इन पहाड़ों पर जा सकती हो न ,
ख़ैर, माफ़ करना मैं भूल गया था
कि जिस जहान में तुम हो
वहां कोई क़ैद में नहीं है
वहां सब आज़ाद हैं
वहां तुम आज़ाद हो
लेकिन मैं यहाँ क़ैद में हूँ
हम सब यहाँ क़ैद में हैं ।
और यह क़ैद सिर्फ अब नहीं है
यहाँ शुरू से ही हम सब एक क़ैद में हैं ।
यहाँ शुरू से ही हम सब एक क़ैद में हैं ।।


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NA MANZOORI

ਮੈਂ ਸੁਣਿਆ ਲੋਕੀਂ ਮੈਨੂੰ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਦੱਸਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਬੁੱਝਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਰਾਜ਼ ਸੱਚ ਖੋਲਣ ਵਾਲਾ  ਤੇ ਕੁਝ ਅਲਫਾਜ਼ਾਂ ਪਿੱਛੇ ਲੁੱਕਿਆ ਕਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਪਰ ਸੱਚ ਦੱਸਾਂ ਮੈਨੂੰ ਕੋਈ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦਾ  ਕਿ ਕੋਈ ਮੇਰੇ ਬਾਰੇ ਕੀ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਕੀ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਕਹਿੰਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਕੋਈ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਨਹੀਂ ਮੰਨਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਅੱਜ ਤਕ ਕਦੇ ਇਹ ਤਾਰੇ ਬੋਲਦੇ ਨਹੀਂ ਸੁਣੇ  ਚੰਨ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੱਲ ਵੇਖ ਸ਼ਰਮਾਉਂਦੇ ਨਹੀਂ ਦੇਖਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਜ਼ੁਲਫ਼ਾਂ `ਚੋਂ ਫੁੱਲਾਂ ਵਾਲੀ ਮਹਿਕ ਜਾਣੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਵੰਗਾਂ ਨੂੰ ਗਾਉਂਦੇ ਸੁਣਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਨੰਗੀਆਂ ਹਿੱਕਾਂ `ਚੋਂ  ਉੱਭਰਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਵਾਲਾ ਨਜ਼ਾਰਾ ਤੱਕਿਆ ਏ  ਨਾ ਹੀ ਤੁਰਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕਦੇ ਤਰਜ਼ ਫੜੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਸਾਹਾਂ ਦੀ ਤਾਲ `ਤੇ ਕਦੇ ਹੇਕਾਂ ਲਾਈਆਂ ਨੇ  ਪਰ ਮੈਂ ਖੂਬ ਸੁਣੀ ਏ  ਗੋਹੇ ਦਾ ਲਵਾਂਡਾ ਚੁੱਕ ਕੇ ਉੱਠਦੀ ਬੁੜੀ ਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕੜਾਕ  ਤੇ ਨਿਓਂ ਕੇ ਝੋਨਾ ਲਾਉਂਦੇ ਬੁੜੇ ਦੀ ਨਿਕਲੀ ਆਹ  ਮੈਂ ਦੇਖੀ ਏ  ਫਾਹਾ ਲੈ ਕੇ ਮਰੇ ਜੱਟ ਦੇ ਬਲਦਾਂ ਦੀ ਅੱਖਾਂ `ਚ ਨਮੋਸ਼ੀ  ਤੇ ਪੱਠੇ ਖਾਂਦੀ ਦੁੱਧ-ਸੁੱਕੀ ਫੰਡਰ ਗਾਂ ਦੇ ਦਿਲ ਦੀ ਬੇਬਸੀ  ਮੈਂ ਸੁਣੇ ਨੇ  ਪੱਠੇ ਕਤਰਦੇ ਪੁਰਾਣੇ ਟੋਕੇ ਦੇ ਵਿਰਾਗੇ ਗੀਤ  ਤੇ ਉਸੇ ਟੋਕੇ ਦੀ ਮੁੱਠ ਦੇ ਢਿੱਲੇ ਨੱਟ ਦੇ ਛਣਛਣੇ  ਮੈਂ ਦੇਖਿਆ ਏ 

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