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Showing posts from January, 2016

ZINDAGI

अपनी ज़िन्दगी को बयान करने के लिए कुझ अल्फ़ाज़ जुटा रहा था तो यह फ़लसफ़ा निकला अपनी ज़िन्दगी का। कभी अपनी एक दुनिया में रहते थे , सब कुझ पाने की हसरत थी। दुनिया की परवाह ना कोई , सपनों से किसे फुरसत  थी। आंसुओं से कोई वास्ता ना था , हसना हमारी फितरत थी। पर अब यह ज़िन्दगी बदल गई ,यह दुनिया बदल गई , ना दुनिया का कोई कोना अच्छा लगता है। इस कदर ज़िन्दगी ने बदला हमें , हसी खो गई कहीं अब तो बस रोना अच्छा लगता है , सब कुझ खोना अच्छा लगता है। 

TERA SHEHAR

यह कुछ पंक्तियाँ एक आज़ाद दोस्त के आज़ाद शहर की आज़ाद सोच के नाम। एक तेरा शहर है , एक मेरा शहर है।  दोनों शहरों की ज़मीन एक है , आसमान एक है , दोनों शहरों की फ़िज़ा एक है।  पर ना-जाने क्यों , तेरे शहर की सपनों की महक  मेरे शहर आते ही बेबसी के आलम में बदल जाती है , ना-जाने क्यों , तेरे शहर से मेरे शहर आते  सारे क़ायदे बदल जाते हैं।  तेरे शहर से अपने शहर आते ही , मेरे रंग बदल जाते हैं , मेरे ढंग बदल जाते हैं , मेरा दिल बदल जाता हैं , मेरे अंग बदल जाते हैं।  तेरे शहर की सोच जो मुझे पंख लगा के भेजती है , वो पंख मेरे शहर आते ही लोगों के बोल क़तर जाते हैं।  चारों और से ताड़ती निग़ाहों की नज़र से , मेरे होंसले डर जाते हैं, लफ्ज़ मर जाते हैं, मेरे गीत ख़ुदकुशी कर जाते हैं।  एक तेरा शहर है , एक मेरा शहर है।