अपनी ज़िन्दगी को बयान करने के लिए कुझ अल्फ़ाज़ जुटा रहा था तो यह फ़लसफ़ा निकला अपनी ज़िन्दगी का। कभी अपनी एक दुनिया में रहते थे , सब कुझ पाने की हसरत थी। दुनिया की परवाह ना कोई , सपनों से किसे फुरसत थी। आंसुओं से कोई वास्ता ना था , हसना हमारी फितरत थी। पर अब यह ज़िन्दगी बदल गई ,यह दुनिया बदल गई , ना दुनिया का कोई कोना अच्छा लगता है। इस कदर ज़िन्दगी ने बदला हमें , हसी खो गई कहीं अब तो बस रोना अच्छा लगता है , सब कुझ खोना अच्छा लगता है।
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