सिर्फ नाम बदलता है चेहरा बदलता है ज़ुल्म तो वही है पाप तो वही है तकलीफ़ तो वही है मौत तो वही है सिर्फ एक दो दिन की बातें या फिर एक दो न-गुज़र सी रातें फिर भूल जायेंगे हम जब तक कोई और ना बन जाये नई निर्भया नई आसिफा या फिर प्रियंका रेड्डी क्या उम्र क़ैद क्या फांसी की सज़ा बस एक बार देदो जो ज़ुल्म वही सज़ा करो बालात्कार उनका भी बना कर टीवी पर चलादो MMS उनका टुकड़े टुकड़े करदो उनके जिस्म के या जलाकर फेँकदो झाड़ियों में लाश उनकी या जनता की अदालत में देदो मुकदमा उनका और पीड़िता के माँ-बाप को बनादो जज वहां का या फिर चौराहे में सूली पर गुप्तांग से लटकादो उनको या फिर गुप्तवास में चलादो गोली उनके जो भी करो लेकिन ऐसी सज़ा जरूर दो उनको ता जो फिर से कोई और ना बन जाये नई निर्भया नई आसिफा या फिर प्रियंका रेड्डी माफ़ करना आज कुछ अच्छे से लिख नहीं पाया क्यूँकि मेरे हाथ कांप रहे हैं मेरी कलम कांप रही है मेरा दिल कांप रहा है मेरी रूह कांप रही है हर बार यह सोच कर मैं कांप उठता हूँ कि क्यूँ नहीं कांपती ज़मीर उनकी जब वो नोच रहे होते हैं कोमल मासूम से जिस्म क्यूँ नहीं दिखती उनको तस्व
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