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Showing posts from April, 2018

RAPE - An Open Letter

RAPE, a four letter word but sufficient to shake anyone with a soul or may be even a soul-less person. With rape becoming almost a fad these days,  it seems they want to create all variety of victims.  Toddlers, kids,  pre teens,  teens,  adults or senior citizens.  No reservations for any age.  Inside the house or outside,  car,  bus, trains,  roads,  parks anywhere and everywhere.  Hindu, Muslim,  Dalit,  High cast anyone or every one.   I only have son, why i need to worry? But who says gender basis reservations are there.  Male or female they wont spare anyone.  Those who disagree with whats written in above paragraph would be shocked if actually all the rape case were reported.  If you are about to start judging me,  no I am not trying to create any sympathy for any male rapist.   A rapist is a rapist be any gender,  cast,  religion or relation.  A rape is...

MAAF KARNA ASIFA

          Justice For Asifa  सिर्फ एक तसवीर है , एक चेहरा है जानता नहीं हूँ कि कौन थी वो , पर आँखों में नूर देख यकीन से कहता हूँ कि जो भी थी , जैसी भी थी अच्छी थी वो , गैरों के हाथ पकड़ साथ चल पड़ी रूह से पाक दिल से सच्ची थी वो , इन्सानियत में छुपी हैवानियत देख न पायी हाँ अभी अकल से कच्ची थी वो , लेकिन तुम तो सियाने थे , पढ़े -लिखे थे , मासूमियत ही देख लेते शैतानो ! आठ साल की नन्ही बच्ची थी वो । लेकिन गलती उसी की थी ग़ैर -हिन्दू हो के भी मंदिर चली गयी शायद मज़हबों के खेल से अनजान थी वो , रोई होगी , चिलायी भी होगी जब नोच रहे थे उसे लेकिन किसी ने भी सुना तक नहीं शायद बेज़ुबान थी वो , लेकिन तुम्हारे तो कान थे तुम सुन सकते थे आँखें थी तुम्हारी तुम देख सकते थे खिलौनों में खेलती कोमल सी जान थी वो , और हाँ अब भी झुंड बना के हम बचा रहे हैं उसके कातिलों को क्यूँकि हम हिन्दू और मुसलमान थी वो । हो सके तो माफ़ करना आसिफा , साथ दे न पाए जब उन दरिंदों से अकेले लड़ी थी तुम , अपने ही हाथों हमने खो दिया तुम्हें , क्यूँकि हमा...