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Showing posts from September, 2017

MERA JAHAAN

यह कुछ पंक्तियाँ पुराने पन्नों में से हैं , जो कि मेरे दिल के काफी करीब हैं।  क़िताब तभी सम्पूर्ण होती है जब उसमें पहले से आखिरी तक सभी पन्नें मौज़ूद हों। मुझे क्या पता क्या तेरा है  क्या मेरा , मैं हूँ सारे जहान का , मेरा सारा जहान है तेरा , अगर हो जाये मुझपे बस मेरा , तो बन के फ़िज़ा तेरी ज़ुल्फ़ों से खेलूँ , बन के ख़िज़ा तेरे ग़मों को झेलूँ , बन के पँछी जगह तेरे आँगन में लेलूँ , और जब भी करे तू नमाज़ , देखूँ तेरा रब सा सच्चा चेहरा , मुझे क्या पता क्या तेरा है  क्या मेरा , मैं हूँ सारे जहान का , मेरा सारा जहान है तेरा । मैं हूँ इस जहान का जिस में खुद भी मैं शामिल नहीं , क्यूँकि जिसका तू ना हिस्सा वो मेरे लिए क़ामिल नहीं , और तू बने इस जहान का , ना यह तेरी हस्ती के काबिल नहीं , वैसे तो मैं इतना फ़ाज़िल नहीं , पर अगर हो जाये मुझपे हक़ मेरा , तो इस रूह का एक जहान बनादुँ , इस जिस्म का एक मकान बनादुँ , जहाँ भी रखे तू कदम , दिल का पायदान बिछादूँ , और महफूज़ रहे तू अपने इस जहान में , लगादूँ इन दो आँखों का पहरा , मुझे क्या पता क्या तेरा है  क्या मेरा , मैं हूँ सारे जहान का , मेरा सा

MEHMAAN

कहने को तो इस शव के दीवान हैं सब, पर सच पूछो तो अपने ही घर मेहमान हैं सब। क्या हसीन पल है जो महफ़िलें सजी हैं , शायद अगले ही दम शमशान है सब। शाह का उधार संग सूद मोड़ दिया , पर साँसों के क़र्ज़ में बेईमान हैं सब। सर झुकाया पंडित को, नाक रगड़ी काज़ी के कदमों में , ऐ ख़ुदा तेरे कदरदान हैं सब। फिरान में बंद बदन के आकार तक माप लिए , विचारों से नैतिक बुद्धि से विद्वान हैं सब। अँधेरे में कोई मासूम देख हैवानियत निकल आई , वरना दिन के उजाले में इंसान हैं सब। हर रोज़ हज़ार-मनी गौ भोग लगते हैं , वाह! कितने मेहरबान हैं सब। सुना कल वोह चौक में भिखारी भूख से मर गया , अब मेहरबान क्यों सुनसान हैं सब। सोचा था अल्फ़ाज़ों से जीत लेंगे हम भी जंग अपनी , हज़ार बार कलम चली पर अनजान रहे सब , वही ज़ेहन है , वही सोच है , वही विचार हैं , अब ज़रा सी ज़ुबान चली तो भला क्यों हैरान हैं सब। कहने को तो इस शव के दीवान हैं सब, पर सच पूछो तो अपने ही घर मेहमान हैं सब । । Kehne ko to is shav ke diwan hai sab Par sach pucho to apne hi ghar mehmaan hai sab ... Kya haseen pal hai jo mehfilein saji hain

DREAMS - An Open Letter

Its after long that I am writing something. A piece of my heart, a piece of my small life, for myself and for every single person who will read this. But today as always its not a poem or a story, these are just my liberal thoughts, my liberal words. My words are not specific to any religion, society or custom. Today these words are about the dreams that we see through our eyes, its about the passion we have to pursue those dreams. These are not the dreams we see during our sleep in night and forget as the dark departs in morning, these are not the dreams that changes every night. These are the dreams that won't let you sleep, that won't let you see any other dream, they changes your life.These dreams don't let you breathe in horror. They are the beautiful pathway, who gives you purpose in life. But my purpose here is not to explain those dreams, but is to fullfil those dreams at any cost. These dreams put you to labour in daylight and makes you sleepless in night. Don

SAPNE - AN OPEN LETTER

आज बहुत दिनों बाद कुछ लिखने लगा हूँ।  कुछ अपने दिल से , अपने इस छोटे से जीवन के अनुभव से , अपने लिए और हर एक शख़्स के लिए जिस तक भी मेरे यह अल्फ़ाज़ पहुँच पाएंगे , जो भी इसे पढ़ेगा। लेकिन आज कोई कविता या कोई कहानी नहीं लिख रहा हूँ , आज बस अपने आज़ाद ख्याल लिख रहा हूँ , अपने आज़ाद अल्फ़ाज़ लिख रहा हूँ और आज के यह अलफ़ाज़ किसी समाज या किसी रिवाज़ के बारे में नहीं हैं , आज के यह अल्फ़ाज़ हम सबकी इन दो आँखों से देखे सपनों के बारे में हैं , उन सपनों को पाने के लिए हमारे दिल में पलते जुनून के बारे में हैं। यह सपने वो सपने नहीं हैं जो हर रात को नींद में सो के देखे जाते हैं और सुबह होते ही रात के अँधेरे के साथ भुला दिए जाते हैं , यह सपने वो सपने नहीं हैं जो हर रात अपना रूप बदल लेते हैं।  यह सपने वो सपने हैं जो एक बार देखने के बाद तमाम उम्र सोने नहीं देते , जो दोबारा कोई और सपना देखने नहीं देते, जो अपने ही रूप में आपकी ज़िन्दगी बदल देते हैं।  यह सपने वो सपने नहीं जो आपको डरा के उठा देते हैं , यह वो हसीन सपने हैं जो आपको जीने की वजह देते हैं एक मक़सद देते हैं।  लेकिन यहाँ मेरा तात्पर्य इन सपनों को ब्यान करना