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Showing posts from October, 2017

DHEE JAMMI AA

ਕੋਈ ਤਾਂ ਸੁਣ ਲਓ ਲੈ ਬੁੱਲਾਂ ਤੇ ਪੁਕਾਰ ਫਿਰਾਂ ਮੈਂ , ਟੁੱਟਿਆ-ਹਾਰਿਆ ਬਦਨਸੀਬ ਲਾਚਾਰ ਫਿਰਾਂ ਮੈਂ , ਸਮਝ ਨਾ ਆਵੇ ਦੇਵਾਂ ਗਲੀਆਂ ਵਿੱਚ ਹੌਕੇ , ਜਾਂ ਫਿਰ ਲੈ ਕੇ ਵਿੱਚ ਬਾਜ਼ਾਰ ਫਿਰਾਂ ਮੈਂ , ਨਾ ਇਹਦਾ ਕੋਈ ਮੁੱਲ ਮੈਂ ਲਾਵਾਂ , ਨਾ ਹੀ ਮੈਂ ਕੁੱਝ ਮੰਗਾਂ ਵਟਾਵਾਂ , ਆਸਾਂ ਦੀ ਕੁੱਖ ਚੋਂ ਐਸੀ ਖੋਟੀ ਸਦਰਾਂ ਦੀ ਲੀਹ ਜੰਮੀ ਏ , ਕੋਈ ਤਾਂ ਲੈ ਲਓ ਮਿੰਨਤ ਕਰਾਂ ਮੈਂ ਸਾਡੇ ਘਰ ਇੱਕ ਧੀ ਜੰਮੀ ਏ । ਪਿੱਛਲੇ ਵਰ੍ਹੇ ਵੀ ਇੱਕ ਕੁਲੈਣੀ ਜੰਮੀ ਸੀ , ਹੱਡਾਂ ਦੇ ਵਿੱਚ ਬਹਿਣੀ ਜੰਮੀ ਸੀ , ਲਾਏ ਸੀ ਜਿਨ੍ਹੇ ਚਾਹਵਾਂ ਨੂੰ ਫਾਹੇ , ਐਸੀ ਹੀ ਟੁੱਟ-ਪੈਣੀ ਜੰਮੀ ਸੀ , ਪਰ ਇਸ ਵਾਰ ਉਮੀਦ ਬੜੀ ਸੀ , ਗਲ਼ ਪਾਈ ਸਾਧ ਦੀ ਤਵੀਤ ਮੜੀ ਸੀ , ਜਿਹਦਾ ਡਰ ਸੀ ਨਾ ਜੰਮੇ ਦੁਬਾਰਾ ਇਸ ਵਾਰ ਵੀ ਚੰਦਰੀ ਓਹੀ ਜੰਮੀ ਏ , ਕੋਈ ਤਾਂ ਲੈ ਲਓ ਮਿੰਨਤ ਕਰਾਂ ਮੈਂ ਸਾਡੇ ਘਰ ਇੱਕ ਧੀ ਜੰਮੀ ਏ । ਪਰ ਹਾਂ ਜੇ ਪੁੱਤ ਜੰਮਦਾ ਤਾਂ ਵਾਂਗ ਰਾਜੇ ਦੇ ਰੱਖਦੇ , ਚੰਨ ਮੁੱਖੜੇ ਤੇ ਕਾਲੇ ਟਿੱਕੇ ਲਾ ਕੇ ਰੱਖਦੇ , ਚੁੱਕਣੇ ਪੈਂਦੇ ਭਾਂਵੇ ਵਿਆਜੂ - ਉਧਾਰੇ , ਪਰ ਹਰ ਮੂੰਹੋਂ ਕੱਢੀ ਓਹਦੀ ਪੁਘਾ ਕੇ ਰੱਖਦੇ , ਸ਼ੌਂਕ ਪੂਰੇ ਓਹਦੇ ਕਰਦੇ ਸਾਰੇ , ਓਹਦੇ ਨਾਂ ਤੇ ਬਣਾਉਂਦੇ ਮਹਿਲ-ਮੁਨਾਰੇ , ਪਰ ਵਾਂਗ ਇੱਟਾਂ ਦੇ ਢਹਿ ਗਏ ਸੁਪਨੇ ਕਰਮਾਂ ਦੀ ਬੈਠੀ ਨੀਂਹ ਜੰਮੀ ਏ , ਕੋਈ ਤਾਂ ਲੈ ਲਓ ਮਿੰਨਤ ਕਰਾਂ ਮੈਂ ਸਾਡੇ ਘਰ ਇੱਕ ਧੀ ਜੰਮੀ ਏ । ਚਲੋ ਛੱਡੋ ਮੇਰੀ ਧੀ ਦੀ ਗੱਲ ਮੁਕਾਓ , ਆਪੇ ਪਾਲ

DIYA

सुन इन त्यौहारों के दिनों में जहाँ लोग तोहफों का लेन-देन कर रहे हैं , वहाँ मैं सिर्फ एक ही अर्ज़ करता हूँ तुझसे कि , यह जो हमने ग़मों के साये में उम्मीद का एक दिया जलाया है , बस इसे कभी बुझने ना देना। यह जो दिया जलाया है हमने , यह हमारे हाथों की मिट्टी से बना हुआ दिया है , जिसमें हमारे दिलों का तेल निचोड़ के डाला हुआ है , और ज़ज़्बातों की बत्ती ने खुद जल के , हमारी ज़िन्दगी के अंधेरों को दूर किया है। अब इस उजाले को कभी रुकने ना देना , यह जो हमने दिया जलाया है अपने अरमानों का , बस इसे कभी बुझने ना देना। और यह दिया हमारे दिलों में एक एहसास रहेगा , मैं रहूँ भी या ना रहूँ , यह हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा , जैसे महसूस करती हो तुम मेरे सीने की गरमाईश , तुम्हारे सीने में इसका ताप रहेगा। और इस ताप के सूर्य को कभी छुपने ना देना , यह जो हमने दिया जलाया है अपने सपनों का , बस इसे कभी बुझने ना देना। बुझ भी जाए अगर मेरी आँखों की रोशनी , तो भी कभी इस दिये का तेज बुझने ना देना , यह हमारी रूह का दिया कभी बुझने ना देना। बस यह दिया कभी बुझने ना देना ।। 

MAAHIR

यह कुछ पंक्तियाँ बड़े ही दिन से दिमाग में चल रहीं थी , तो आज सोचा कि इनको जैसे तैसे भी कोई एक रूप दे कर आप सबके सामने पेश करूँ। दिल तो करता है कि सबको बतादूँ,                                      ईरादा इस दिल बेईमान का , ऊँची आवाज़ में सबको सुनादूँ ,                                       जवाब हर एक सवाल का , दिल चाहे एक ही पल में निपटादूँ,                                      मसला मैं हर एक बवाल का , पर यह सोच कर चुप रह जाता हूँ                                      कि यह सब वस मेरे से बाहर है , वैसे भी कौन सुनता यहाँ किसी की ,                                      यहाँ तो सब सुनाने में माहिर हैं।                                     यहाँ तो सब सुनाने में माहिर हैं ।। कई बार कोशिश भी की हिम्मत करने की,                                     कि कब तक यूँही डरता रहूँगा मैं , सोचता तो हूँ कि उगलदूँ सारा लावा,                                     कब तक अंदर ही अंदर जलता रहूँगा मैं , ज्यादा से ज्यादा होगा भी तो क्या ,                                      क

KHWAAB

आज एक महफ़िल में बैठे वहाँ के माहौल को देखते - सुनते कुछ अल्फ़ाज़ दिमाग में आये , जिनको उसी रूप में बिना किसी सही-गलत के तराज़ू में तोले हुए आप सब के साथ साँझें कर रहा हूँ। आज भी बैठा हूँ कुछ ख्वाबज़ादों की महफ़िल में , लगा हुआ  है ख्वाबों का  मेला , पतंगों के जैसे उड़ रहें हैं ख्वाब हवा में , रंग-बिरंगा हो गया आसमान यह नीला , जहाँ तक भी जा रही है नज़र , नज़र आ रहें हैं तो बस ख्वाब ही ख्वाब , किसी का परिंदों की तरह उड़ने का ख्वाब , तो किसी का सिकंदर बन दुनिया जीतने का ख्वाब , पर असलियत से बेखबर हर एक नज़र , जाने ना कि यह ख्वाब आख़िर हैं तो ख्वाब , पतंगों का ही दूसरा रूप दूसरा नाम हैं ख्वाब , और पतंगों के जैसे ही होता इनका अंजाम , हमेशा खेल नहीं सकते हवाओं के संग , एक ना एक दिन चाहते न-चाहते आ कर ज़मीन पर ही गिरेंगे यह ख्वाब , ख़ैर कल की सोचेंगे कल को , जो होगा देखा जायेगा उस पल को , आओ इन ख्वाबज़ादों के संग हम भी देखें कुछ ख्वाब। क्यूंकि चाहे ख्वाब में ही सही हर ख्वाब दिल बहलाता तो है , माना कि इस जोकर की औकात नहीं उड़ने की , फिर भी हवा का झोंका मन को भाता तो है , वो कहते हैं