Skip to main content

Posts

Showing posts from February, 2018

KYA BAAT KARUN

क्या बात करूँ इस दुनिया की मैं लो मेरे दोनों हाथ खड़े हैं , खुद से भी तन्हा अकेला हूँ मैं और कहने को सब साथ खड़े हैं , लाखों के मज्मे पर पहचान कोई ना चेहरे पर लेकर सब नक़ाब खड़े हैं। क्या बात करूँ इस दुनिया की मैं लो मेरे दोनों हाथ खड़े हैं । किस किसका दूँ जवाब मैं यारो हर ज़ुबान पर बीस सवाल खड़े हैं , हर सवाल का एक जवाब भी दूँ तो हर जवाब पर बीस बवाल खड़े हैं, यही सोच के चुप्पी साध लेता हूँ कि दिल पे पहले ही बीस सौ मलाल खड़े हैं। क्या बात करूँ इस दुनिया की मैं लो मेरे दोनों हाथ खड़े हैं । सपनों की गठड़ी लेकर निकले थे घर से कि आगे सब हम-ख़याल खड़े हैं, लेकिन खयालों की हसती ही क्या इस दौड़ में सब इख्तलाल खड़े हैं, आँख खुली तो इहसास हुआ कि अपनी ही ज़मीन पर हम ख़ुद बे-हाल खड़े हैं। क्या बात करूँ इस दुनिया की मैं लो मेरे दोनों हाथ खड़े हैं । दूर से देखा तो यूँ लगा कि सब हाथों में लेकर गुलाल खड़े हैं, पास पहुँचने पर पता चला कि सबके हाथ खून से लाल पड़े हैं, घूमूँ लेकर कितने फांसी के फंदे कदम-कदम यहाँ कसाब खड़े हैं। क्या बात करूँ इस दुनिया की मैं लो मेरे दोनों हाथ खड़े

PATHAR

ਪੱਥਰਾਂ ਦੀ ਦੁਨੀਆ ਚ ਪੱਥਰ ਪੈਦਾ ਹੋਇਆ ਮੈਂ ... ਜਿੱਥੇ ਪੱਥਰਾਂ ਦੇ ਮੁਲਕ ਤੇ ਪੱਥਰਾਂ ਦੇ ਸ਼ਹਿਰ ਨੇ , ਪੱਥਰਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਵਸਦੇ ਵਿਚ ਪੱਥਰਾਂ ਦੇ ਮਹਿਲ ਨੇ ,  ਪੱਥਰ ਜੂਹਾਂ ਪੱਥਰ ਰੂਹਾਂ , ਹਰ ਪਾਸੇ ਪੱਥਰ ਹੀ ਪੱਥਰ ਨੇ , ਬਸ ਇੱਕ ਦੇਹ ਹੀ ਇਕੱਲੀ ਮਿੱਟੀ ਆ, ਬਾਕੀ ਦਿਲ ਤਾਂ ਸਭ ਦੇ ਪੱਥਰ ਨੇ ।  ਪੱਥਰਾਂ ਦੀ ਦੁਨੀਆ ਚ ਪੱਥਰ ਪੈਦਾ ਹੋਇਆ ਮੈਂ , ਜਿੱਥੇ ਸਭ ਤੇਰੇ-ਮੇਰੇ , ਆਪਣੇ-ਪਰਾਏ ਪੱਥਰ ਨੇ । ਪੱਥਰ ਮਿਲਦੇ ਨੇ ਤਾਂ ਪੱਥਰ ਬਣਦੇ ਨੇ , ਪੱਥਰ ਕਿਰਦੇ ਨੇ ਤਾਂ ਵੀ ਪੱਥਰ ਬਣਦੇ ਨੇ , ਪੱਥਰਾਂ ਨੇ ਪੱਥਰ ਜਾਏ , ਸਭ ਸਾਕ-ਸੰਬੰਧੀ ਪੱਥਰ ਨੇ , ਬਸ ਰਿਸ਼ਤੇ ਤੇ ਹੀ ਇੱਥੇ ਕੱਚ ਦੇ ਆ , ਬਾਕੀ ਨਿਭਾਉਣ ਵਾਲੇ ਸਭ ਪੱਥਰ ਨੇ । ਪੱਥਰਾਂ ਦੀ ਦੁਨੀਆ ਚ ਪੱਥਰ ਪੈਦਾ ਹੋਇਆ ਮੈਂ , ਜਿੱਥੇ ਸਭ ਤੇਰੇ-ਮੇਰੇ , ਆਪਣੇ-ਪਰਾਏ ਪੱਥਰ ਨੇ । ਸਿਰਫ ਪੱਥਰ ਦੁਨੀਆ ਹੀ ਨਹੀਂ ਉਹ ਅਰਸ਼ ਵੀ ਪੱਥਰ ਆ , ਨੀਲੇ ਸੰਗਮਰਮਰ ਪਿੱਛੇ ਲੁੱਕਿਆ ਉਹ ਅਕਸ ਵੀ ਪੱਥਰ ਆ , ਪੱਥਰਾਂ ਨੂੰ ਪੱਥਰ ਪੂਜਣ , ਸਭ ਗੁਰਮੁਖ - ਮਨਮੁਖ ਪੱਥਰ ਨੇ , ਬਸ ਇਕ ਜੋਤਿ ਹੀ ਇਕੱਲੀ ਨੂਰ ਹੈ , ਬਾਕੀ ਮਨ ਤਾਂ ਸਭ ਦੇ ਪੱਥਰ ਨੇ । ਪੱਥਰਾਂ ਦੀ ਦੁਨੀਆ ਚ ਪੱਥਰ ਪੈਦਾ ਹੋਇਆ ਮੈਂ , ਜਿੱਥੇ ਸਭ ਤੇਰੇ-ਮੇਰੇ , ਆਪਣੇ-ਪਰਾਏ ਪੱਥਰ ਨੇ ।। Pathran di dunia ch pathar paida hoya mein, Jithe pathran se mulak ne pathran de shehar ne, Patharn de lok va

KUDRAT

किस्मत वाले हैं जो निभा पाते हैं , वरना हर किसी ने अपने-अपने तरीके से भुला दिया , किसी ने धुएँ में उड़ा दिया तो किसी ने महखाने में बहा दिया , पर देख मेरी हिम्मत ना हार मानी ना किस्मत ने साथ दिया , बस एक पेड़ लगा दिया, दो पंछी पाल लिए और एक दीया जला दिया , देख कैसे अपनी मोहब्बत को मैंने कुदरत बना दिया । वो जिसे हर रोज़ नमस्तक करती हो तुम छुप ना जाये कहीं वो सुबह का सूरज अपना दिल जला के हवा में उछाल दिया , वो जहाँ दोपहर को खाने के बाद टहलती हो तुम वो तुम्हारे ऑफिस के पास कच्चे रास्ते पर दुआओं का घास बिछा दिया , वो जिसे हर शाम पढ़ती हो तुम चाय की चुस्कियों के साथ अपने हर ज़ज़्बात को अल्फ़ाज़ बना के उस रसाले में छपवा दिया , और हाँ वो जो रात के साये में नींद को ओढ़ कर गुनगुनाती हो तुम , पेड़ों को राग , दीये को आलाप और पंछिओं को वो गीत सीखा दिया , देख कैसे अपनी मोहब्बत को मैंने कुदरत बना दिया । माफ़ करना जो बना ना पाया तुम्हें अपनी इस दुनिया का हिस्सा , पर तुम्हारे चेहरे को खुदा और तुम्हारे नाम को नमाज़ बना दिया । देख कैसे अपनी मोहब्बत को मैंने कुदरत बना दिया ।।