मैंने पहली बार कुछ कब लिखा था
वो तो मुझे याद है
लेकिन आखरी बार कब और क्या लिखा
मुझे पता नहीं
कितने दिनों से कागज़ और कलम में
एक दूरी सी रखी थी
आज सुबह से ही कलम डायरी में क्यूँ रखी
मुझे पता नहीं
गर्मी काफी है बाहर अँधेरा भी बहुत है
इतना तो इल्म है
लेकिन तारीख क्या है दिन कौनसा है समय क्या हुआ
मुझे पता नहीं
नीचे फ़र्श पर अल्फ़ाज़ बिखेर कर बैठा हूँ
मजमा सा लग गया है
लेकिन आज भी कुछ लिख पाऊँगा या नहीं
मुझे पता नहीं
रेल की पटरी जैसे एक साथ चल रही हैं मेरी ज़िन्दगी में
दोनों में से क्या लिखूँ
तुझसे ना-चाहते दूरी या उससे ना-चाहते नज़दीकी
मुझे पता नहीं
आज आँखें बंद करके लिख रहा हूँ जैसे अक्सर तुम्हारे
माथे को चूम्मा करता था
अब छंद से भटक जाऊँ या क़ाफ़िए से उतर जाऊँ
मुझे पता नहीं
तुम्हें याद है मेरी हर कविता सबसे पहले तुम पढ़ा करती थी
फिर सबकी नज़र करता था
आज इसे पढ़ने वाली नज़रें तो बहुत हैं लेकिन तुम पढ़ोगी या नहीं
मुझे पता नहीं
इन बिन सोचे-समझे लफ़्ज़ों का शीर्षक तो मैंने लिख लिया
"मुझे पता नहीं"
लेकिन अब इसे गीत , ग़ज़ल या कविता लिखूँ
Waahh !!!
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