यह कविता नहीं है यह कहानी है - कुछ सपनों की , कुछ अपनों की। यह कुछ पंक्तियाँ बड़े ही सच्चे मन से , सही-गलत की समझ से दूर रह कर लिखी हैं जो आपके साथ सांझी कर रहा हूँ। उम्मीद तथा निवेदन दोनों करता हूँ कि इनको यूँही सच्चे मन के साथ दिल से पढ़ना , दिमाग से नहीं।
तीन परिंदे थे एक शाख पर रहते थे ,
छोटे नादान बच्चे से
और कच्चे से पंख थे उनके ,
उड़ना अभी आता नहीं था
यूँही हवा के संग आँख मिचोली खेलते ,
कुछ फड़-फड़ाते कुछ लड़-खड़ाते
ख्वाबों के भर के बस्ते
अपनी छोटी सी उड़ान में मस्त थे ,
लेकिन देख उनको यूँ हस्ते-खेलते
मचने लगे थे हवा के झोंके ,
आंधी के संग हाथ मिलाया
एक दिन ऐसा तूफ़ान मचाया ,
कि नए-नए जो पंख थे निकले
उनको उड़ा के छोड़ा
खुले आसमान के बीच में ,
अब जैसे तैसे सीख गए तीनों ऊँची उड़ाने
हाथ जो पकडे थे कस के वो हाथों से फिसले ,
अब उड़ते तीनों अपने-अपने झुंड में
आज़ाद परिंदे लगे निज़मों में बँधने ,
अब तो उड़ाने बन गईं कारोबार कमाई
ना कोई आँख मिचोली ना छुपन-छुपाई ,
अब पेड़ों से पेड़ और देसों से देस
ऊँची हवा में ऊँचा हो गया भेस ,
लेकिन अब भी मन में मिलने की आस
ख्वाबों में बस वही एक शाख ,
कि चाहे आँख बचा के चाहे पंख कटा के
चाहे तूफ़ान मिटा के चाहे आसमान झुका के ,
फिर से उड़ेंगे एक साथ
कुछ फड़-फड़ाते कुछ लड़-खड़ाते
फिर से बन के छोटे नादान
अपनी वो छोटी सी उड़ान ,
वो जो तीन परिंदे थे जो एक शाख पर रहते थे ।
वो जो तीन परिंदे थे एक शाख पर रहते थे ।।
तीन परिंदे थे एक शाख पर रहते थे ,
छोटे नादान बच्चे से
और कच्चे से पंख थे उनके ,
उड़ना अभी आता नहीं था
यूँही हवा के संग आँख मिचोली खेलते ,
कुछ फड़-फड़ाते कुछ लड़-खड़ाते
ख्वाबों के भर के बस्ते
अपनी छोटी सी उड़ान में मस्त थे ,
लेकिन देख उनको यूँ हस्ते-खेलते
मचने लगे थे हवा के झोंके ,
आंधी के संग हाथ मिलाया
एक दिन ऐसा तूफ़ान मचाया ,
कि नए-नए जो पंख थे निकले
उनको उड़ा के छोड़ा
खुले आसमान के बीच में ,
अब जैसे तैसे सीख गए तीनों ऊँची उड़ाने
हाथ जो पकडे थे कस के वो हाथों से फिसले ,
अब उड़ते तीनों अपने-अपने झुंड में
आज़ाद परिंदे लगे निज़मों में बँधने ,
अब तो उड़ाने बन गईं कारोबार कमाई
ना कोई आँख मिचोली ना छुपन-छुपाई ,
अब पेड़ों से पेड़ और देसों से देस
ऊँची हवा में ऊँचा हो गया भेस ,
लेकिन अब भी मन में मिलने की आस
ख्वाबों में बस वही एक शाख ,
कि चाहे आँख बचा के चाहे पंख कटा के
चाहे तूफ़ान मिटा के चाहे आसमान झुका के ,
फिर से उड़ेंगे एक साथ
कुछ फड़-फड़ाते कुछ लड़-खड़ाते
फिर से बन के छोटे नादान
अपनी वो छोटी सी उड़ान ,
वो जो तीन परिंदे थे जो एक शाख पर रहते थे ।
वो जो तीन परिंदे थे एक शाख पर रहते थे ।।
Nyc
ReplyDeletenice
ReplyDeleteWonderful
ReplyDeleteBeautiful bro
ReplyDeleteNicee bro❤
ReplyDeleteNice Dear...
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