सिर्फ एक तसवीर है , एक चेहरा है
जानता नहीं हूँ कि कौन थी वो ,
पर आँखों में नूर देख यकीन से कहता हूँ
कि जो भी थी , जैसी भी थी अच्छी थी वो ,
गैरों के हाथ पकड़ साथ चल पड़ी
रूह से पाक दिल से सच्ची थी वो ,
इन्सानियत में छुपी हैवानियत देख न पायी
हाँ अभी अकल से कच्ची थी वो ,
लेकिन तुम तो सियाने थे ,
पढ़े -लिखे थे , मासूमियत ही देख लेते
शैतानो ! आठ साल की नन्ही बच्ची थी वो ।
लेकिन गलती उसी की थी
ग़ैर -हिन्दू हो के भी मंदिर चली गयी
शायद मज़हबों के खेल से अनजान थी वो ,
रोई होगी , चिलायी भी होगी जब नोच रहे थे उसे
लेकिन किसी ने भी सुना तक नहीं
शायद बेज़ुबान थी वो ,
लेकिन तुम्हारे तो कान थे तुम सुन सकते थे
आँखें थी तुम्हारी तुम देख सकते थे
खिलौनों में खेलती कोमल सी जान थी वो ,
और हाँ अब भी झुंड बना के हम
बचा रहे हैं उसके कातिलों को
क्यूँकि हम हिन्दू और मुसलमान थी वो ।
हो सके तो माफ़ करना आसिफा , साथ दे न पाए
जब उन दरिंदों से अकेले लड़ी थी तुम ,
अपने ही हाथों हमने खो दिया तुम्हें ,
क्यूँकि हमारी नियत से कहीं बड़ी थी तुम ,
आज भी यह लिख के कलम तो तोड़ दूँगा ,
लेकिन तुम्हे इन्साफ दिला ना पाउँगा मैं ,
माफ़ करना आसिफा , तुम्हारी इस मौत को
किसी कानून के दायरे में ला ना पाउँगा मैं ,
उम्र भर भी इस कलम से लिख के सुलझा ना पाउँगा मैं ,
जो आज आँखों में सवाल लिए पास खड़ी थी तुम।
माफ़ करना आसिफा, हमारी नियत से कहीं बड़ी थी तुम ।
हमारी नियत से कहीं बड़ी थी तुम ।।
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Thanks for your valuable time and support. (Arun Badgal)