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AZADI

एक आज़ाद मुल्क का आज़ाद नागरिक होने के नाते मुझे भी हक़ है ,
कि मैं भी जी सकता हूँ अपनी आज़ाद ज़िन्दगी अपने आज़ाद ख्यालों के साथ।
कि एक छोटी सी बात है जो हज़ार बार समझा चूका हूँ ,
फिर क्यों इतना तंग करते हो फज़ूल सवालों के साथ।
कि जो टूटे सपनों के तिनके फसे पड़े हैं
 मेरी आँखों में ,निकलेंगे तो सिर्फ अश्कों से ,
चाहे लाख कोशिश करलो समुन्द्र के उछालों के साथ।
कि जुगनू हूँ तो अँधेरी रात में ही दिखूँगा ,
तो फिर क्यों ढूंढ रहे हो मुझे सूरज के उजालों के साथ।
कि एक अन-सुलझी सी पहेली हूँ , यह जानते हुए भी
क्यों उलझते हो मेरे मन के बवालों के साथ।
सच कहूँ तो यह कहना-सुनाना मेरे बस का नहीं ,
तो भुला देना तुम भी यह सब अपने ही ख्यालों के साथ।
पर आज़ाद मुल्क का आज़ाद नागरिक होने के नाते सिर्फ आज़ादी चाहता हूँ ,
अगर अब भी समझ ना पाओ मेरी मर्ज़ी ,
तो जला देना मुझे उसी आज़ादी की मिशालों के साथ।
एक आज़ाद मुल्क का आज़ाद नागरिक होने के नाते मुझे भी हक़ है ,
कि मैं भी जी सकता हूँ अपनी आज़ाद ज़िन्दगी अपने आज़ाद ख्यालों के साथ।

+
(Ek azad mulak ka azad nagrik hone ke naate mujhe bhi haq hai ,
 Ki main bhi jee sakta hu apni azad zindagi apne azad khyalon ke sath .
 Ki ek choti si baat hai jo hazaar baar samza chuka hu ,
 Fir kyu itna tang karte ho fazool sawaalon ke sath .
 Ki jo tute sapno ke tinke fase pde hai
 Meri aankho mein, niklege to sirf ashkon se ,
 Chahe laakh koshish krlo samundar ke uchaalon ke sath .
 Ki jugnu hu to andheri raat mein hi dikhuga ,
 To fir kyu dhund rhe ho mujhe suraj ke ujaalon ke sath .
 Ki ek an-suljhi si paheli hu , yeh jaante huye bhi
 Kyu ulajhte ho mere mann ke bawaalon ke sath .
 Sach kahu to yeh kehna-sun'na mere bass ka nahi,
 To bhula dena tum bhi yeh sab apne hi khyalon ke sath .
 Par azad mulak ka azad nagrik hone ke naate sirf azadi chahta hu,
 Agar ab bhi samaz na pao meri marzi ,
 To jala dena mujhe usi azadi ki mishaalon ke sath .
 Ek azad mulak ka azad nagrik hone ke naate mujhe bhi haq hai ,
 Ki main bhi jee sakta hu apni azad zindagi apne azad khyalon ke sath ... )




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ਮੈਂ ਸੁਣਿਆ ਲੋਕੀਂ ਮੈਨੂੰ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਦੱਸਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਬੁੱਝਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਰਾਜ਼ ਸੱਚ ਖੋਲਣ ਵਾਲਾ  ਤੇ ਕੁਝ ਅਲਫਾਜ਼ਾਂ ਪਿੱਛੇ ਲੁੱਕਿਆ ਕਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਪਰ ਸੱਚ ਦੱਸਾਂ ਮੈਨੂੰ ਕੋਈ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦਾ  ਕਿ ਕੋਈ ਮੇਰੇ ਬਾਰੇ ਕੀ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਕੀ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਕਹਿੰਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਕੋਈ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਨਹੀਂ ਮੰਨਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਅੱਜ ਤਕ ਕਦੇ ਇਹ ਤਾਰੇ ਬੋਲਦੇ ਨਹੀਂ ਸੁਣੇ  ਚੰਨ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੱਲ ਵੇਖ ਸ਼ਰਮਾਉਂਦੇ ਨਹੀਂ ਦੇਖਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਜ਼ੁਲਫ਼ਾਂ `ਚੋਂ ਫੁੱਲਾਂ ਵਾਲੀ ਮਹਿਕ ਜਾਣੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਵੰਗਾਂ ਨੂੰ ਗਾਉਂਦੇ ਸੁਣਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਨੰਗੀਆਂ ਹਿੱਕਾਂ `ਚੋਂ  ਉੱਭਰਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਵਾਲਾ ਨਜ਼ਾਰਾ ਤੱਕਿਆ ਏ  ਨਾ ਹੀ ਤੁਰਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕਦੇ ਤਰਜ਼ ਫੜੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਸਾਹਾਂ ਦੀ ਤਾਲ `ਤੇ ਕਦੇ ਹੇਕਾਂ ਲਾਈਆਂ ਨੇ  ਪਰ ਮੈਂ ਖੂਬ ਸੁਣੀ ਏ  ਗੋਹੇ ਦਾ ਲਵਾਂਡਾ ਚੁੱਕ ਕੇ ਉੱਠਦੀ ਬੁੜੀ ਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕੜਾਕ  ਤੇ ਨਿਓਂ ਕੇ ਝੋਨਾ ਲਾਉਂਦੇ ਬੁੜੇ ਦੀ ਨਿਕਲੀ ਆਹ  ਮੈਂ ਦੇਖੀ ਏ  ਫਾਹਾ ਲੈ ਕੇ ਮਰੇ ਜੱਟ ਦੇ ਬਲਦਾਂ ਦੀ ਅੱਖਾਂ `ਚ ਨਮੋਸ਼ੀ  ਤੇ ਪੱਠੇ ਖਾਂਦੀ ਦੁੱਧ-ਸੁੱਕੀ ਫੰਡਰ ਗਾਂ ਦੇ ਦਿਲ ਦੀ ਬੇਬਸੀ  ਮੈਂ ਸੁਣੇ ਨੇ  ਪੱਠੇ ਕਤਰਦੇ ਪੁਰਾਣੇ ਟੋਕੇ ਦੇ ਵਿਰਾਗੇ ਗੀਤ  ਤੇ ਉਸੇ ਟੋਕੇ ਦੀ ਮੁੱਠ ਦੇ ਢਿੱਲੇ ਨੱਟ ਦੇ ਛਣਛਣੇ  ਮੈਂ ਦੇਖਿਆ ਏ 

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