हर रोज़ नया पन्ना बदलता हूँ ,
हर रोज़ नई कहानी बदलता हूँ ,
हक़ीकत बदलने की औक़ात नहीं
जो भी बदलता हूँ मुँह-ज़ुबानी बदलता हूँ ,
लेकिन आज ख़ुद के बदले में भी बदल देता ,
अगर उन शहीद वीरों की बलायें बदल पाता ।
निकाल देता इस हिस्से को अपने देश से ,
काश ! इस कलम से मैं सीमायें बदल पाता ।
काश बदल पाता इस सफ़ेद स्वर्ग को
काली खूँखार चैटानों में ,
काश बदल पाता इस सुबह के उजाले
अँधेरी रातों के वीरानों में ,
या बंटने ना देता इस ज़मीन को
सियासत के दीवानों में ,
ता जो मर ना पाता वीर कोई
इन आतंक के तूफानों में ,
पत्थर हो जाता इस पत्थर के टुकड़े में ही ,
अगर बेख़ौफ़ चलती नफरत की हवायें बदल पाता।
निकाल देता इस हिस्से को अपने देश से ,
काश ! इस कलम से मैं सीमायें बदल पाता।
काश बदल पाता मैं लोग यहाँ के ,
काश बदल पाता मैं सोच यहाँ की ,
काश जगा पाता मैं इसको गहरी नींद से
काश होश में ला पाता मैं होश यहाँ की ,
काश दिखा पाता मैं इसको बिखरी लाशें
काश सुँघा पाता मैं इसको बहता खून यहाँ पे ,
काश सुना पाता मैं इसको प्यार के नग्मे
काश समझा पाता मैं इसको सुकून यहाँ पे ,
ख़ाक कर लेता खुद को यहाँ की राहों में ही ,
काश ! मैं इसके क़दमों की बहकी दिशायें बदल पाता।
निकाल देता इस हिस्से को अपने देश से ,
काश ! इस कलम से मैं सीमायें बदल पाता।
काश ! इस कलम से मैं सीमायें बदल पाता ।।
हर रोज़ नई कहानी बदलता हूँ ,
हक़ीकत बदलने की औक़ात नहीं
जो भी बदलता हूँ मुँह-ज़ुबानी बदलता हूँ ,
लेकिन आज ख़ुद के बदले में भी बदल देता ,
अगर उन शहीद वीरों की बलायें बदल पाता ।
निकाल देता इस हिस्से को अपने देश से ,
काश ! इस कलम से मैं सीमायें बदल पाता ।
काश बदल पाता इस सफ़ेद स्वर्ग को
काली खूँखार चैटानों में ,
काश बदल पाता इस सुबह के उजाले
अँधेरी रातों के वीरानों में ,
या बंटने ना देता इस ज़मीन को
सियासत के दीवानों में ,
ता जो मर ना पाता वीर कोई
इन आतंक के तूफानों में ,
पत्थर हो जाता इस पत्थर के टुकड़े में ही ,
अगर बेख़ौफ़ चलती नफरत की हवायें बदल पाता।
निकाल देता इस हिस्से को अपने देश से ,
काश ! इस कलम से मैं सीमायें बदल पाता।
काश बदल पाता मैं लोग यहाँ के ,
काश बदल पाता मैं सोच यहाँ की ,
काश जगा पाता मैं इसको गहरी नींद से
काश होश में ला पाता मैं होश यहाँ की ,
काश दिखा पाता मैं इसको बिखरी लाशें
काश सुँघा पाता मैं इसको बहता खून यहाँ पे ,
काश सुना पाता मैं इसको प्यार के नग्मे
काश समझा पाता मैं इसको सुकून यहाँ पे ,
ख़ाक कर लेता खुद को यहाँ की राहों में ही ,
काश ! मैं इसके क़दमों की बहकी दिशायें बदल पाता।
निकाल देता इस हिस्से को अपने देश से ,
काश ! इस कलम से मैं सीमायें बदल पाता।
काश ! इस कलम से मैं सीमायें बदल पाता ।।
Salute 🇮🇳
ReplyDeleteWell said
ReplyDeleteRIP
ReplyDeleteJai Hind 🙏
💜💜
ReplyDeleteRip
ReplyDeleteJai hind
Ik badla
काश बदल पाता मै उन जवानो का मुक्कद्दर
ReplyDeleteजो निकले थे घरो से जान दाव पर लगाकर
काश बदल पाता मै वो पल बेरेहम जिनमे
कुर्बान होकर कुछ वीर गये शहीद बनकर
किसको समझाऊ मे दुनिया की हकीकत?
क्या जान से ज्यादा है जमीन की किमत?
काश! मै भटकी हुई सोच को बदल पाता
काश! इस्स कलम से मै सीमाये बदल पाता...
RIP
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