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PULWAMA

हर रोज़ नया पन्ना बदलता हूँ ,
हर रोज़ नई कहानी बदलता हूँ ,
हक़ीकत बदलने की औक़ात नहीं
जो भी बदलता हूँ मुँह-ज़ुबानी बदलता हूँ ,
लेकिन आज ख़ुद के बदले में भी बदल देता ,
अगर उन शहीद वीरों की बलायें बदल पाता ।
निकाल देता इस हिस्से को अपने देश से ,
काश ! इस कलम से मैं सीमायें बदल पाता ।

काश बदल पाता इस सफ़ेद स्वर्ग को
काली खूँखार चैटानों में ,
काश बदल पाता इस सुबह के उजाले
अँधेरी रातों के वीरानों में ,
या बंटने ना देता इस ज़मीन को
सियासत के दीवानों में ,
ता जो मर ना पाता वीर कोई 
इन आतंक के तूफानों में ,
पत्थर हो जाता इस पत्थर के टुकड़े में ही ,
अगर बेख़ौफ़ चलती नफरत की हवायें बदल पाता।
निकाल देता इस हिस्से को अपने देश से ,
काश ! इस कलम से मैं सीमायें बदल पाता।

काश बदल पाता मैं लोग यहाँ के ,
काश बदल पाता मैं सोच यहाँ की ,
काश जगा पाता मैं इसको गहरी नींद से
काश होश में ला पाता मैं होश यहाँ की ,
काश दिखा पाता मैं इसको बिखरी लाशें
काश सुँघा पाता मैं इसको बहता खून यहाँ पे ,
काश सुना पाता मैं इसको प्यार के नग्मे
काश समझा पाता मैं इसको सुकून यहाँ पे ,
ख़ाक कर लेता खुद को यहाँ की राहों में ही ,
काश ! मैं इसके क़दमों की बहकी दिशायें बदल पाता।
निकाल देता इस हिस्से को अपने देश से ,
काश ! इस कलम से मैं सीमायें बदल पाता।
काश ! इस कलम से मैं सीमायें बदल पाता ।।




Comments

  1. काश बदल पाता मै उन जवानो का मुक्कद्दर
    जो निकले थे घरो से जान दाव पर लगाकर
    काश बदल पाता मै वो पल बेरेहम जिनमे
    कुर्बान होकर कुछ वीर गये शहीद बनकर
    किसको समझाऊ मे दुनिया की हकीकत?
    क्या जान से ज्यादा है जमीन की किमत?
    काश! मै भटकी हुई सोच को बदल पाता
    काश! इस्स कलम से मै सीमाये बदल पाता...

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Thanks for your valuable time and support. (Arun Badgal)

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NA MANZOORI

ਮੈਂ ਸੁਣਿਆ ਲੋਕੀਂ ਮੈਨੂੰ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਦੱਸਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਬੁੱਝਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਰਾਜ਼ ਸੱਚ ਖੋਲਣ ਵਾਲਾ  ਤੇ ਕੁਝ ਅਲਫਾਜ਼ਾਂ ਪਿੱਛੇ ਲੁੱਕਿਆ ਕਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਪਰ ਸੱਚ ਦੱਸਾਂ ਮੈਨੂੰ ਕੋਈ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦਾ  ਕਿ ਕੋਈ ਮੇਰੇ ਬਾਰੇ ਕੀ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਕੀ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਕਹਿੰਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਕੋਈ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਨਹੀਂ ਮੰਨਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਅੱਜ ਤਕ ਕਦੇ ਇਹ ਤਾਰੇ ਬੋਲਦੇ ਨਹੀਂ ਸੁਣੇ  ਚੰਨ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੱਲ ਵੇਖ ਸ਼ਰਮਾਉਂਦੇ ਨਹੀਂ ਦੇਖਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਜ਼ੁਲਫ਼ਾਂ `ਚੋਂ ਫੁੱਲਾਂ ਵਾਲੀ ਮਹਿਕ ਜਾਣੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਵੰਗਾਂ ਨੂੰ ਗਾਉਂਦੇ ਸੁਣਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਨੰਗੀਆਂ ਹਿੱਕਾਂ `ਚੋਂ  ਉੱਭਰਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਵਾਲਾ ਨਜ਼ਾਰਾ ਤੱਕਿਆ ਏ  ਨਾ ਹੀ ਤੁਰਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕਦੇ ਤਰਜ਼ ਫੜੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਸਾਹਾਂ ਦੀ ਤਾਲ `ਤੇ ਕਦੇ ਹੇਕਾਂ ਲਾਈਆਂ ਨੇ  ਪਰ ਮੈਂ ਖੂਬ ਸੁਣੀ ਏ  ਗੋਹੇ ਦਾ ਲਵਾਂਡਾ ਚੁੱਕ ਕੇ ਉੱਠਦੀ ਬੁੜੀ ਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕੜਾਕ  ਤੇ ਨਿਓਂ ਕੇ ਝੋਨਾ ਲਾਉਂਦੇ ਬੁੜੇ ਦੀ ਨਿਕਲੀ ਆਹ  ਮੈਂ ਦੇਖੀ ਏ  ਫਾਹਾ ਲੈ ਕੇ ਮਰੇ ਜੱਟ ਦੇ ਬਲਦਾਂ ਦੀ ਅੱਖਾਂ `ਚ ਨਮੋਸ਼ੀ  ਤੇ ਪੱਠੇ ਖਾਂਦੀ ਦੁੱਧ-ਸੁੱਕੀ ਫੰਡਰ ਗਾਂ ਦੇ ਦਿਲ ਦੀ ਬੇਬਸੀ  ਮੈਂ ਸੁਣੇ ਨੇ  ਪੱਠੇ ਕਤਰਦੇ ਪੁਰਾਣੇ ਟੋਕੇ ਦੇ ਵਿਰਾਗੇ ਗੀਤ  ਤੇ ਉਸੇ ਟੋਕੇ ਦੀ ਮੁੱਠ ਦੇ ਢਿੱਲੇ ਨੱਟ ਦੇ ਛਣਛਣੇ  ਮੈਂ ਦੇਖਿਆ ਏ 

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