Skip to main content

NARGIS KA PHOOL

बहारें भी आयेंगी खिज़ाएँ भी आयेंगी ,
मद्धम हवाएँ भी आयेंगी , तलातुम ख़ेज़ घटाएँ भी आयेंगी ,
बशर ज़ात सा ही है यह मौसम दर-ब-दर टहकता ही रहेगा।
लेकिन यह जो सूखे पत्तों में अकेला चमक रहा है ,
यह नरगिस का फूल है हर हाल में महकता ही रहेगा ।

किसी की रहमत का मोहताज नहीं है यह फूल
यह खिलेगा , मुरझायेगा , फिर से खिलेगा ,
मिट्टी से जन्मा है मिट्टी में ही रहेगा लेकिन
इसकी चाहत का पराग हर भँवरे की सांस में मिलेगा ,
सूरज का हम-साया है यह फूल
हर रोज़ वो निकलेगा हर रोज़ यह चहकता ही रहेगा ,
यह नरगिस का फूल है हर हाल में महकता ही रहेगा ।

लेकिन ख़ुदी के कांटे ख़ुद को चोभ लेता है
थोड़ा सा बेरहम है यह फूल ,
ख़ुद ख़ुदी से टूट कर ख़ुदी पर रो लेता है
रंगों में लिपटा सहम है यह फूल ,
बगीचे से वीरान बगीचों की हस्ती है
ख़ैर तुम्हारे गमले की क़ैद में भी दहकता ही रहेगा ,
यह नरगिस का फूल है हर हाल में महकता ही रहेगा ।
यह नरगिस का फूल है हर हाल में महकता ही रहेगा ।।

Comments

Popular posts from this blog

BHEED

भीड़    इस मुल्क में    अगर कुछ सबसे खतरनाक है तो यह भीड़ यह भीड़ जो ना जाने कब कैसे  और कहाँ से निकल कर आ जाती है और छा जाती है सड़कों पर   और धूल उड़ा कर    खो जाती है उसी धूल में कहीं   लेकिन पीछे छोड़ जाती है   लाल सुरख गहरे निशान   जो ता उम्र उभरते दिखाई देते हैं   इस मुल्क के जिस्म पर लेकिन क्या है यह भीड़   कैसी है यह भीड़    कौन है यह भीड़   इसकी पहचान क्या है   इसका नाम क्या है   इसका जाति दीन धर्म ईमान क्या है   इसका कोई जनम सर्टिफिकेट नहीं हैं क्या   इसका कोई पैन आधार नहीं है क्या   इसकी उँगलियों के निशान नहींं हैं क्या इसका कोई वोटर कार्ड या    कोई प्रमाण पत्र नहीं हैं क्या   भाषण देने वालो में   इतनी चुप्पी क्यों है अब इन सब बातों के उत्तर नहीं हैं क्या उत्तर हैं उत्तर तो हैं लेकिन सुनेगा कौन सुन भी लिया तो सहेगा कौन और सुन‌कर पढ़कर अपनी आवाज़ में कहेगा कौन लेकिन अब लिखना पड़ेगा अब पढ़ना पड़ेगा  कहना सुनना पड़ेगा सहना...

Akhri Dua - Punjabi Poem

  ਰੱਬ ਕਰੇ ਇਹ ਰੂਹ ਮੇਰੀ ਜੁਦਾ ਇਸ ਦੇਹ ਤੋਂ ਹੋ ਜਾਵੇ  ਖੰਭ ਲਗਾ ਕੇ ਮਾਰ ਉਡਾਰੀ ਓਹਦੀ ਜੂਹੇ ਜਾਣ ਖਲੋ ਜਾਵੇ  ਓਹਦੇ ਪੈਰਾਂ ਨੂੰ ਚੁੰਮੇ ਓਹਦੇ ਚਾਰ - ਚੁਫ਼ੇਰੇ ਘੁੰਮੇ  ਓਹਦੀ ਕਰੇ ਪਰਿਕਰਮਾ ਓਹਦੇ ਦਰ ਦੀ ਖੇਹ ਹੋ ਜਾਵੇ  ਰੱਬ ਕਰੇ ਇਹ ਰੂਹ ਮੇਰੀ ਜੁਦਾ ਇਸ ਦੇਹ ਤੋਂ ਹੋ ਜਾਵੇ  ਓਹਦੇ ਬੈਠ ਬਨੇਰੇ ਬਿੜਕਾਂ ਲਵੇ ਵਾਂਗ ਕਾਲਿਆਂ ਕਾਵਾਂ  ਹਰ ਸਾਹ ਓਹਦੇ ਨਾਲ ਰਹੇ ਬਣ ਓਹਦਾ ਪਰਛਾਵਾਂ  Click to Read Full Poem (Pay to View Content)

Gham Mein Hun

मैं ग़म में हूँ  मैं ग़म में हूँ  ग़मों के यम में हूँ मैं मर गया मुझमें ही कहीं  मैं ख़ुद ख़ुदी के मातम में हूँ  मैं ग़म में हूँ  महकते फूल तरसते रहे  चंद मोतियों के लिए  मैं किसी गंद पे गिरी शबनम में हूँ  मैं ग़म में हूँ  जो किसी ने दी किसी को महज़ तोड़ने के लिए  मैं किसी के सिर की झूठी क़सम में हूँ  मैं ग़म में हूँ  ज़िंदगी के रास्ते में  पिछड़ गया मैं ख़ुद से  लेकिन दुनिया के काफ़िले में मुक़द्दिम में हूँ  मैं ग़म में हूँ  अपनी नज़रों में  बिख़र गया हूँ तिनका तिनका करके  यूँ आईने में देखूँ तो मुसल्लम में हूँ  मैं ग़म में हूँ  तुम हमदम हो गए  किसी ग़ैर के संग  मैं अभी भी तेरे मेरे वाले हम में हूँ  मैं ग़म में हूँ  कैसे चल लेते हो  बेवफ़ाई संग अकड़ कर  मैं तो वफ़ा संग भी ख़म में हूँ  मैं ग़म में हूँ  खाने से पहले तुम्हारे लिए  निकाल देता हूँ पहला निवाला  मैं अभी भी उस मुहब्बत के उस नियम में हूँ  मैं ग़म में हूँ  अरे! मत दो मुझे  हंसी की दावत का न्योता...