Skip to main content

EK ILTIJA

देखो जब सारी बातें ख़तम हो गई, तो कहने को कुछ बाकी नहीं है ,
पर फिर भी एक बात कहना चाहता हूँ तुझसे कि ,
फुरसत के पलों में कभी मिलना ना मुझसे ,
क्यूँकि सवाल बहुत हैं , बवाल बहुत हैं , उभर आएंगे।

यकीन करना मेरे किसी भी सवाल का तुम्हारे पास जवाब नहीं होगा ,
मेरे शिकवों और तुम्हारी मजबूरीओं का कोई हिसाब नहीं होगा ,
दिल की कचहरी में बेबसी की गवाही से इन्साफ नहीं होगा ,
और हाँ, वो रात जो कुछ सेहमी सी थी ,जिस में तू कुछ बहकी सी थी ,
और हाँ, मेरी भी सांस कुछ सहकी सी थी ,
शरेआम ना हो जाये कहीं हर पल तू डरी रहती सी थी ,
निकाल देना वो डर  भी अपने मन से ,
क्यूँकि वो पल कभी भी बेनक़ाब नहीं होगा ,
पर फिर भी तू फुरसत के पलों में कभी मिलना ना मुझसे ,
क्यूँकि सवाल बहुत हैं , बवाल बहुत हैं , उभर आएंगे।

यकीन करना तेरे सामने मुझसे रहा नहीं जायेगा ,
खुद को रोक नहीं पाऊँगा मैं ,
ऊँची आवाज़ में कुछ कहा नहीं जायेगा ,
आँखों को बहने से रोक नहीं पाऊँगा मैं ,
यकीन करना तुझसे भी यह सब देखा नहीं जायेगा ,
मेरी तरह ही खुद को रोक नहीं पायेगी तू  ,
गले से लगा के मुझे मेरे आँसू पोंछ के ,
मेरा माथा चूमने से खुद को रोक नहीं पायेगी तू  ,
और हाँ, वो जो तेरे कदम , जो एक बार पहले भी भटक चुके हैं ,
यकीन करना इस बार भी उन्हें भटकने से रोक नहीं पायेगी तू  ,
और हाँ, पिछली बार जो सह गया था मैं , इस बार सहा नहीं जायेगा,
खुद खुदी से नफरत करने से खुद को रोक नहीं पाऊँगा मैं ,
सो ख़ुदा के लिए, अपने लिए , मेरे लिए , हमारे लिए ,
तू फुरसत के पलों में कभी मिलना ना मुझसे ,
क्यूँकि सवाल बहुत हैं , बवाल बहुत हैं , उभर आएंगे।



(Dekho jab sari baatein khatam ho gyi hai to kehne ko kuch baaki nai hai,
 Par phir bhi ek baat kehna chahta hu tujhse ki,
 Fursat ke palon mein kabhi milna na mujhse ,
 Kyuki sawaal bahut hai, bawaal bahut hai, ubhar aayege..

 Yakeen karna mere kisi bhi sawaal ka tumhare paas jawaab nai hoga,
 Mere shikvon aur tumhari majburion ka koi hisaab nai hoga,
 Dil ki kachehri mein bebasi ki gawaahi se insaaf nai hoga,
 Aur haan, wo raat jo kuch sehmi si thi, jis mein tu kuch behki si thi,
 Aur haan, meri bhi saans kuch sehki si thi,
 Shareaam na ho jaye kahin har pal tu dari rehti si thi,
 Nikaal dena wo darr bhi apne mann se,
 Kyuki wo pal kabhi bhi benaqaab nai hoga,
 Par phir bhi tu fursat ke palon mein kabhi milna na mujhse,
 Kyuki sawaal bahut hai, bawaal bahut hai, ubhar aayege..

 Yakeen karna tere saahmne mujhse raha nahi jayega,
 Khud ko rok nahi paunga main.
 Unchi awaaz mein kuch kaha nahi jayega,
 Aankhon ko behne se rok nahi paunga main.
 Yakeen karna tujhse bhi yeh sab dekha nahi jayega,
 Meri tarah hi khud ko rok nahi payegi tu,
 Gale se lga ke mujhe mere aansu ponch ke,
 Mera maatha chumne se khud ko rok nahi payegi tu.
 Aur haan, wo jo tere kadam, jo ek baar pehle bhi bhatak chuke hain,
 Yakeen karna is baar bhi unhein bhatakne se rok nahi payegi tu.
 Aur haan, pichli baar jo seh gya the main, is baar saha nahi jayega.
 Khud khudi se nafrat karne se khud ko rok nahi paunga main.
 So Khuda ke liye, apne liye, mere liye, hamare liye,
 Tu fursat ke palon mein kabhi milna na mujhse,
 Kyuki sawaal bahut hai, bawaal bahut hai, ubhar aayege..... )

Comments

Post a Comment

Thanks for your valuable time and support. (Arun Badgal)

Popular posts from this blog

NA MANZOORI

ਮੈਂ ਸੁਣਿਆ ਲੋਕੀਂ ਮੈਨੂੰ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਦੱਸਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਬੁੱਝਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਰਾਜ਼ ਸੱਚ ਖੋਲਣ ਵਾਲਾ  ਤੇ ਕੁਝ ਅਲਫਾਜ਼ਾਂ ਪਿੱਛੇ ਲੁੱਕਿਆ ਕਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਪਰ ਸੱਚ ਦੱਸਾਂ ਮੈਨੂੰ ਕੋਈ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦਾ  ਕਿ ਕੋਈ ਮੇਰੇ ਬਾਰੇ ਕੀ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਕੀ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਕਹਿੰਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਕੋਈ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਨਹੀਂ ਮੰਨਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਅੱਜ ਤਕ ਕਦੇ ਇਹ ਤਾਰੇ ਬੋਲਦੇ ਨਹੀਂ ਸੁਣੇ  ਚੰਨ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੱਲ ਵੇਖ ਸ਼ਰਮਾਉਂਦੇ ਨਹੀਂ ਦੇਖਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਜ਼ੁਲਫ਼ਾਂ `ਚੋਂ ਫੁੱਲਾਂ ਵਾਲੀ ਮਹਿਕ ਜਾਣੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਵੰਗਾਂ ਨੂੰ ਗਾਉਂਦੇ ਸੁਣਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਨੰਗੀਆਂ ਹਿੱਕਾਂ `ਚੋਂ  ਉੱਭਰਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਵਾਲਾ ਨਜ਼ਾਰਾ ਤੱਕਿਆ ਏ  ਨਾ ਹੀ ਤੁਰਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕਦੇ ਤਰਜ਼ ਫੜੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਸਾਹਾਂ ਦੀ ਤਾਲ `ਤੇ ਕਦੇ ਹੇਕਾਂ ਲਾਈਆਂ ਨੇ  ਪਰ ਮੈਂ ਖੂਬ ਸੁਣੀ ਏ  ਗੋਹੇ ਦਾ ਲਵਾਂਡਾ ਚੁੱਕ ਕੇ ਉੱਠਦੀ ਬੁੜੀ ਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕੜਾਕ  ਤੇ ਨਿਓਂ ਕੇ ਝੋਨਾ ਲਾਉਂਦੇ ਬੁੜੇ ਦੀ ਨਿਕਲੀ ਆਹ  ਮੈਂ ਦੇਖੀ ਏ  ਫਾਹਾ ਲੈ ਕੇ ਮਰੇ ਜੱਟ ਦੇ ਬਲਦਾਂ ਦੀ ਅੱਖਾਂ `ਚ ਨਮੋਸ਼ੀ  ਤੇ ਪੱਠੇ ਖਾਂਦੀ ਦੁੱਧ-ਸੁੱਕੀ ਫੰਡਰ ਗਾਂ ਦੇ ਦਿਲ ਦੀ...

अर्ज़ी / ARZI

आज कोई गीत या कोई कविता नहीं, आज सिर्फ एक अर्ज़ी लिख रहा हूँ , मन मर्ज़ी से जीने की मन की मर्ज़ी लिख रहा हूँ । आज कोई ख्वाब  , कोई  हसरत  या कोई इल्तिजा नहीं , आज बस इस खुदी की खुद-गर्ज़ी लिख रहा हूँ ,  मन मर्ज़ी से जीने की मन की मर्ज़ी लिख रहा हूँ ।  कि अब तक जो लिख-लिख कर पन्ने काले किये , कितने लफ्ज़ कितने हर्फ़ इस ज़ुबान के हवाले किये , कि कितने किस्से इस दुनिआ के कागज़ों पर जड़ दिए , कितने लावारिस किरदारों को कहानियों के घर दिए , खोलकर देखी जो दिल की किताब तो एहसास हुआ कि अब तक  जो भी लिख रहा हूँ सब फ़र्ज़ी लिख रहा हूँ। लेकिन आज कोई दिल बहलाने वाली झूठी उम्मीद नहीं , आज बस इन साँसों में सहकती हर्ज़ी लिख रहा हूँ , मन मर्ज़ी से जीने की मन की मर्ज़ी लिख रहा हूँ । कि आवारा पंछी हूँ एक , उड़ना चाहता हूँ ऊँचे पहाड़ों में , नरगिस का फूल हूँ एक , खिलना चाहता हूँ सब बहारों में , कि बेबाक आवाज़ हूँ एक, गूँजना चाहता हूँ खुले आसमान पे , आज़ाद अलफ़ाज़ हूँ एक, गुनगुनाना चाहता हूँ हर ज़ुबान पे , खो जाना चाहता हूँ इस हवा में बन के एक गीत , बस...

BHEED

भीड़    इस मुल्क में    अगर कुछ सबसे खतरनाक है तो यह भीड़ यह भीड़ जो ना जाने कब कैसे  और कहाँ से निकल कर आ जाती है और छा जाती है सड़कों पर   और धूल उड़ा कर    खो जाती है उसी धूल में कहीं   लेकिन पीछे छोड़ जाती है   लाल सुरख गहरे निशान   जो ता उम्र उभरते दिखाई देते हैं   इस मुल्क के जिस्म पर लेकिन क्या है यह भीड़   कैसी है यह भीड़    कौन है यह भीड़   इसकी पहचान क्या है   इसका नाम क्या है   इसका जाति दीन धर्म ईमान क्या है   इसका कोई जनम सर्टिफिकेट नहीं हैं क्या   इसका कोई पैन आधार नहीं है क्या   इसकी उँगलियों के निशान नहींं हैं क्या इसका कोई वोटर कार्ड या    कोई प्रमाण पत्र नहीं हैं क्या   भाषण देने वालो में   इतनी चुप्पी क्यों है अब इन सब बातों के उत्तर नहीं हैं क्या उत्तर हैं उत्तर तो हैं लेकिन सुनेगा कौन सुन भी लिया तो सहेगा कौन और सुन‌कर पढ़कर अपनी आवाज़ में कहेगा कौन लेकिन अब लिखना पड़ेगा अब पढ़ना पड़ेगा  कहना सुनना पड़ेगा सहना...