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BATWAARA

जब सारा कुछ ही बंटा पड़ा है इस दुनिया में ,
तो आ हम भी एक बटवारा करते हैं ,
आज से दिन तेरे और रात मेरी।
इस गोरे दिन की रोशनी तेरी, खुशियाँ तेरी, हर महफ़िल तेरी ,
इस गोरे दिन का हर एक रंग तेरा , मगर रात पे नज़र न रखना,
उस काली रात का अँधेरा मेरा , उस काली रात की ख़ामोशी मेरी।
इस गोरे दिन के गलीचे पर तुम मेले लगाना , हर त्योहार मनाना ,
इक्कठे करके तुम सारे बशर ढोल बजाना , खूब शोर मचाना ,
मगर रात को ज़रा सी भी आवाज़ न करना ,
उस काली रात की चादर पर बैठ के हम भी एक मज़मा लगाएंगे ,
इक्कठे करके ग़म के बाशिंदे चुप्पी के राग मल्हार गायेंगे ,
उस काली रात के साये में बैठ के टूटे सपनों का सोग मनाएंगे।
तो आ आज हम भी एक बटवारा करते हैं ,
आज से गोरे दिन तेरे और काली रात मेरी।
इस गोरे दिन के चार पहर तो तेरे हैं ही, चल तू रात के दो पहर भी लेले,
इस गोरे दिन के काफिले तो तेरे हैं ही, चल तू रात के रास्ते भी लेले,
इस गोरे दिन का सूरज तो तेरा है ही , चल तू  रात के चाँद-तारे भी लेले ,
मगर मेरी काली रात के सन्नाटे पर नज़र न रखना ,
अब तो वही एक आखरी सौग़ात मेरी।
जब सारा कुछ ही बंटा पड़ा है इस दुनिया में ,
तो आ हम भी एक बटवारा करते हैं ,
आज से दिन तेरे और रात मेरी।

(Jab sara kuch hi banta pda hai is dunia mein,
 To aa hum bhi ek batwaara karte hai,
 Aaj se din tere aur raat meri..
 Is gore din ki roshni teri, khushian teri, har mehfil teri,
 Is gore din ka har ek rang tera, magar raat pe nazar na rakhna ,
 Us kaali raat ka andhera mera, us kaali raat ki khamoshi meri.
 Is gore din ke galiche par tum mele lgaana, har tyohaar mnaana,
 Ikkathe karke tum sare bashar dhol bajaana, khoob shor machaana,
 Magar raat ko zara si bhi awaaz na karna,
 Us kaali raat ki chaadar par beth ke hum bhi ek mazma lgaayege,
 Ikkathe kar ke gham ke bashinde chuppi ke raag malhaar gaayege,
 Us kaali raat ke saaye mein  beth ke tute sapno ka sog mnaatege.
 To aa aaj hum bhi ek batwaara karte hai,
 Aaj se gore din tere aur kaali raat meri.
 Is gore din ke chaar pahar to tere hai hi, chal tu raat ke do pahar bhi lele,
 Is gore din ke kaafile to tere hai hi, chal tu raat ke raaste bhi lele,
 Is gore din ka suraj to tera hai hi, chal tu raat ke chaand-taare bhi lele,
 Magar meri kaali raat ke sannaton par nazar na rakhna,
 Ab to wohi ek aakhri saugaat meri.
 Jab sara kuch hi banta pda hai is dunia mein,
 To aa hum bhi ek batwaara karte hai,
 Aaj se din tere aur raat meri.. )





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ਮੈਂ ਸੁਣਿਆ ਲੋਕੀਂ ਮੈਨੂੰ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਦੱਸਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਬੁੱਝਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਰਾਜ਼ ਸੱਚ ਖੋਲਣ ਵਾਲਾ  ਤੇ ਕੁਝ ਅਲਫਾਜ਼ਾਂ ਪਿੱਛੇ ਲੁੱਕਿਆ ਕਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਪਰ ਸੱਚ ਦੱਸਾਂ ਮੈਨੂੰ ਕੋਈ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦਾ  ਕਿ ਕੋਈ ਮੇਰੇ ਬਾਰੇ ਕੀ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਕੀ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਕਹਿੰਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਕੋਈ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਨਹੀਂ ਮੰਨਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਅੱਜ ਤਕ ਕਦੇ ਇਹ ਤਾਰੇ ਬੋਲਦੇ ਨਹੀਂ ਸੁਣੇ  ਚੰਨ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੱਲ ਵੇਖ ਸ਼ਰਮਾਉਂਦੇ ਨਹੀਂ ਦੇਖਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਜ਼ੁਲਫ਼ਾਂ `ਚੋਂ ਫੁੱਲਾਂ ਵਾਲੀ ਮਹਿਕ ਜਾਣੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਵੰਗਾਂ ਨੂੰ ਗਾਉਂਦੇ ਸੁਣਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਨੰਗੀਆਂ ਹਿੱਕਾਂ `ਚੋਂ  ਉੱਭਰਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਵਾਲਾ ਨਜ਼ਾਰਾ ਤੱਕਿਆ ਏ  ਨਾ ਹੀ ਤੁਰਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕਦੇ ਤਰਜ਼ ਫੜੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਸਾਹਾਂ ਦੀ ਤਾਲ `ਤੇ ਕਦੇ ਹੇਕਾਂ ਲਾਈਆਂ ਨੇ  ਪਰ ਮੈਂ ਖੂਬ ਸੁਣੀ ਏ  ਗੋਹੇ ਦਾ ਲਵਾਂਡਾ ਚੁੱਕ ਕੇ ਉੱਠਦੀ ਬੁੜੀ ਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕੜਾਕ  ਤੇ ਨਿਓਂ ਕੇ ਝੋਨਾ ਲਾਉਂਦੇ ਬੁੜੇ ਦੀ ਨਿਕਲੀ ਆਹ  ਮੈਂ ਦੇਖੀ ਏ  ਫਾਹਾ ਲੈ ਕੇ ਮਰੇ ਜੱਟ ਦੇ ਬਲਦਾਂ ਦੀ ਅੱਖਾਂ `ਚ ਨਮੋਸ਼ੀ  ਤੇ ਪੱਠੇ ਖਾਂਦੀ ਦੁੱਧ-ਸੁੱਕੀ ਫੰਡਰ ਗਾਂ ਦੇ ਦਿਲ ਦੀ ਬੇਬਸੀ  ਮੈਂ ਸੁਣੇ ਨੇ  ਪੱਠੇ ਕਤਰਦੇ ਪੁਰਾਣੇ ਟੋਕੇ ਦੇ ਵਿਰਾਗੇ ਗੀਤ  ਤੇ ਉਸੇ ਟੋਕੇ ਦੀ ਮੁੱਠ ਦੇ ਢਿੱਲੇ ਨੱਟ ਦੇ ਛਣਛਣੇ  ਮੈਂ ਦੇਖਿਆ ਏ 

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