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KYA LIKHUN MAIN

लिखने बैठूँ तो समझ ना आए क्या लिखूँ मैं ,

तेरी महफ़िल की शहनाई लिखूँ या अपनी महफ़िल की तन्हाई लिखूँ मैं ,
उम्र भर जो तू करता रहा इस जोकर से , वो वफ़ा लिखूँ या,
उस एक पल की बेवफ़ाई  लिखूँ मैं ,
होते देख बेगाना मुँह से निकली दुआ लिखूँ या दिल से निकली आह लिखूँ मैं।
लिखने बैठूँ तो समझ ना आए क्या लिखूँ मैं।

उस खुदा की कुदरत लिखूँ या इन्सान की फितरत लिखूँ मैं ,
जिसके बह गए सब ख्वाब पसीने में , उस गरीब की मेहनत लिखूँ या ,
किसी रईस बाप के बेटे की किस्मत लिखूँ मैं ,
अब बताओ उस की रहमत लिखूँ या फिर बेइन्साफ़ सज़ा लिखूँ मैं।
लिखने बैठूँ तो समझ ना आए क्या लिखूँ मैं।

देश में अर्थ-व्यवस्था की मार लिखूँ या विदेशी दौरे पर सरकार लिखूँ मैं ,
सड़क के इस ओर चलता कर-मुक्त योग का व्यापार लिखूँ या ,
उस पार मज़बूरी में चलता लाल बाज़ार लिखूँ मैं ,
अब पैकेट बंद पत्तियों का दाम लिखूँ या नंगे जिस्मों का भाव लिखूँ मैं।
लिखने बैठूँ तो समझ ना आए क्या लिखूँ मैं।

उसके नाम पर एक पैगाम लिखूँ या यह ख़त यूँही बेनाम लिखूँ मैं ,
ऐसे ही लिखदूँ मौसम का हाल उसे या
हाल-ए-दिल ब्यान करते उसके इश्क़ का अंजाम लिखूँ  मैं ,
उसपे लिखूँ उसका नाम और घर का पता या कब्रिस्तान में सरु के पेड़ का निशान लिखूँ मैं।
लिखने बैठूँ तो समझ ना आए क्या लिखूँ मैं।
इस काफ़िर दिल की ज़ुबान लिखूँ या आस्तिक दुनिया की दास्तान लिखूँ मैं।
लिखने बैठूँ तो समझ ना आए क्या लिखूँ मैं । ।

Likhne bethu to samaz na aaye kya likhun main ,

Teri mehfil ki shahnai likhun ya apni mehfil ki tanhai likhun main ,
Umar bhar jo tu karta rha is Joker se , wo wafa likhun ya ,
Us ek pal ki bewafai likhun main ,
Hote dekh begana muh se nikli dua likhun ya dil se nikli aah likhun main ..
Likhne bethu to samaz na aaye kya likhun main ...

Us khuda ki kudrat likhun ya insan ki fitrat likhun main ,
Jiske beh gye sab khwaab paseene mein , us gareeb ki mehnat likhun ya ,
Kisi raees baap ke bete ki kismat likhun main ,
Ab btao uski rehmat likhun ya fir beinsaf saza likhun main ..
Likhne bethu to samaz na aaye kya likhun main ...

Desh mein arth-vyavstha ki maar likhun ya videshi daure par sarkar likhun main ,
Sadak ke is aur chalta kar-mukt yog ka vyapar likhun ya ,
Us paar majburi mein chalta laal bazar likhun main ,
Ab packet band pattiyon ka daam likhun ya nange jismon ka bhaav likhun main ..
Likhne bethu to samaz na aaye kya likhun main ...

Uske naam par ek paigam likhun ya yeh khat yunhi benaam likhun main ,
Aise hi likhdun mausam ka haal use ya ,
Haal-e-dil byan karte uske ishq ka anjaam likhun main ,
Uspe likhun uska naam aur ghar ka pata ya kabirstan mein saru ke pedh ka nishan likhun main ..
Likhne bethu to samaz na aaye kya likhun main ...
Is kafir dil ki zubaan likhun ya aastik dunia ki daastan likhun main ..
Likhne bethu to samaz na aaye kya likhun main ...

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NA MANZOORI

ਮੈਂ ਸੁਣਿਆ ਲੋਕੀਂ ਮੈਨੂੰ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਦੱਸਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਬੁੱਝਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਰਾਜ਼ ਸੱਚ ਖੋਲਣ ਵਾਲਾ  ਤੇ ਕੁਝ ਅਲਫਾਜ਼ਾਂ ਪਿੱਛੇ ਲੁੱਕਿਆ ਕਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਪਰ ਸੱਚ ਦੱਸਾਂ ਮੈਨੂੰ ਕੋਈ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦਾ  ਕਿ ਕੋਈ ਮੇਰੇ ਬਾਰੇ ਕੀ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਕੀ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਕਹਿੰਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਕੋਈ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਨਹੀਂ ਮੰਨਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਅੱਜ ਤਕ ਕਦੇ ਇਹ ਤਾਰੇ ਬੋਲਦੇ ਨਹੀਂ ਸੁਣੇ  ਚੰਨ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੱਲ ਵੇਖ ਸ਼ਰਮਾਉਂਦੇ ਨਹੀਂ ਦੇਖਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਜ਼ੁਲਫ਼ਾਂ `ਚੋਂ ਫੁੱਲਾਂ ਵਾਲੀ ਮਹਿਕ ਜਾਣੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਵੰਗਾਂ ਨੂੰ ਗਾਉਂਦੇ ਸੁਣਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਨੰਗੀਆਂ ਹਿੱਕਾਂ `ਚੋਂ  ਉੱਭਰਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਵਾਲਾ ਨਜ਼ਾਰਾ ਤੱਕਿਆ ਏ  ਨਾ ਹੀ ਤੁਰਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕਦੇ ਤਰਜ਼ ਫੜੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਸਾਹਾਂ ਦੀ ਤਾਲ `ਤੇ ਕਦੇ ਹੇਕਾਂ ਲਾਈਆਂ ਨੇ  ਪਰ ਮੈਂ ਖੂਬ ਸੁਣੀ ਏ  ਗੋਹੇ ਦਾ ਲਵਾਂਡਾ ਚੁੱਕ ਕੇ ਉੱਠਦੀ ਬੁੜੀ ਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕੜਾਕ  ਤੇ ਨਿਓਂ ਕੇ ਝੋਨਾ ਲਾਉਂਦੇ ਬੁੜੇ ਦੀ ਨਿਕਲੀ ਆਹ  ਮੈਂ ਦੇਖੀ ਏ  ਫਾਹਾ ਲੈ ਕੇ ਮਰੇ ਜੱਟ ਦੇ ਬਲਦਾਂ ਦੀ ਅੱਖਾਂ `ਚ ਨਮੋਸ਼ੀ  ਤੇ ਪੱਠੇ ਖਾਂਦੀ ਦੁੱਧ-ਸੁੱਕੀ ਫੰਡਰ ਗਾਂ ਦੇ ਦਿਲ ਦੀ ਬੇਬਸੀ  ਮੈਂ ਸੁਣੇ ਨੇ  ਪੱਠੇ ਕਤਰਦੇ ਪੁਰਾਣੇ ਟੋਕੇ ਦੇ ਵਿਰਾਗੇ ਗੀਤ  ਤੇ ਉਸੇ ਟੋਕੇ ਦੀ ਮੁੱਠ ਦੇ ਢਿੱਲੇ ਨੱਟ ਦੇ ਛਣਛਣੇ  ਮੈਂ ਦੇਖਿਆ ਏ 

अर्ज़ी / ARZI

आज कोई गीत या कोई कविता नहीं, आज सिर्फ एक अर्ज़ी लिख रहा हूँ , मन मर्ज़ी से जीने की मन की मर्ज़ी लिख रहा हूँ । आज कोई ख्वाब  , कोई  हसरत  या कोई इल्तिजा नहीं , आज बस इस खुदी की खुद-गर्ज़ी लिख रहा हूँ ,  मन मर्ज़ी से जीने की मन की मर्ज़ी लिख रहा हूँ ।  कि अब तक जो लिख-लिख कर पन्ने काले किये , कितने लफ्ज़ कितने हर्फ़ इस ज़ुबान के हवाले किये , कि कितने किस्से इस दुनिआ के कागज़ों पर जड़ दिए , कितने लावारिस किरदारों को कहानियों के घर दिए , खोलकर देखी जो दिल की किताब तो एहसास हुआ कि अब तक  जो भी लिख रहा हूँ सब फ़र्ज़ी लिख रहा हूँ। लेकिन आज कोई दिल बहलाने वाली झूठी उम्मीद नहीं , आज बस इन साँसों में सहकती हर्ज़ी लिख रहा हूँ , मन मर्ज़ी से जीने की मन की मर्ज़ी लिख रहा हूँ । कि आवारा पंछी हूँ एक , उड़ना चाहता हूँ ऊँचे पहाड़ों में , नरगिस का फूल हूँ एक , खिलना चाहता हूँ सब बहारों में , कि बेबाक आवाज़ हूँ एक, गूँजना चाहता हूँ खुले आसमान पे , आज़ाद अलफ़ाज़ हूँ एक, गुनगुनाना चाहता हूँ हर ज़ुबान पे , खो जाना चाहता हूँ इस हवा में बन के एक गीत , बस आज उसी की साज़-ओ-तर्ज़ी लिख रहा हूँ। जो चुप-

BHEED

भीड़    इस मुल्क में    अगर कुछ सबसे खतरनाक है तो यह भीड़ यह भीड़ जो ना जाने कब कैसे  और कहाँ से निकल कर आ जाती है और छा जाती है सड़कों पर   और धूल उड़ा कर    खो जाती है उसी धूल में कहीं   लेकिन पीछे छोड़ जाती है   लाल सुरख गहरे निशान   जो ता उम्र उभरते दिखाई देते हैं   इस मुल्क के जिस्म पर लेकिन क्या है यह भीड़   कैसी है यह भीड़    कौन है यह भीड़   इसकी पहचान क्या है   इसका नाम क्या है   इसका जाति दीन धर्म ईमान क्या है   इसका कोई जनम सर्टिफिकेट नहीं हैं क्या   इसका कोई पैन आधार नहीं है क्या   इसकी उँगलियों के निशान नहींं हैं क्या इसका कोई वोटर कार्ड या    कोई प्रमाण पत्र नहीं हैं क्या   भाषण देने वालो में   इतनी चुप्पी क्यों है अब इन सब बातों के उत्तर नहीं हैं क्या उत्तर हैं उत्तर तो हैं लेकिन सुनेगा कौन सुन भी लिया तो सहेगा कौन और सुन‌कर पढ़कर अपनी आवाज़ में कहेगा कौन लेकिन अब लिखना पड़ेगा अब पढ़ना पड़ेगा  कहना सुनना पड़ेगा सहना पड़ेगा और समझना पड़ेगा कि क्या है यह भीड़ कैसी है यह भीड़  कौन है यह भीड़ कोई अलग चेहरा नहीं है इसका  कोई अलग पहरावा नहीं है इसका कोई अलग पहचान नहीं है इसकी क