यह कोई कविता या कहानी नहीं है यह भारत देश का नागरिक होने के नाते भारत सरकार के नाम मेरा हलफनामा है जिसमें मैं पूरे होश-ओ-हवास में यह घोषणा करता हूँ कि मैं जन्म से ही भारतीय नागरिक हूँ और जन्म से ही आत्म-निर्भर हूँ और यह आत्म-निर्भरता मुझे किसी नीले या पीले कार्ड पर नहीं मिली यह आत्म-निर्भरता मुझे किसी केन्द्रीय या राज्य सरकार योजना से नहीं मिली यह आत्म-निर्भरता मुझे मेरी विरासत से मिली है यह आत्म-निर्भरता मुझे मेरे बाप से मिली है और मेरे बाप को अपने बाप से और मेरे बाप के बाप को उसके बाप से मिली है यह आत्म-निर्भरता शायद हमारे संविधान में कहीं लिखी हुई है या फिर उससे भी पहले हमारे किसी शास्त्र या वेद-ग्रंथ में लिखी हुई है कि मैं भारत का आम नागरिक जब से होश संभालता हूँ खुद कमा के खुद खाता हूँ और अपना परिवार चलाता हूँ और करदाता बनकर भारत की सरकार चलाता हूँ कि मैं भारत का आम नागरिक रोज़ काम करके जितना कमाता हूँ उसमें महज़ तीन वक़्त का खाना खा पाता हूँ कि मैं भारत का आम नागरिक सरकार से जो कुछ भी सेवाएँ पात
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