Read MULK (Punjabi Poetry) here मैंने कल रेडियो पर सुना कि इस मुल्क के दिन बदल गए हैं इस मुल्क की आवाम बदल गई है इस मुल्क के चेहरे-चिन्ह बदल गए हैं मैंने सुना इस मुल्क की बड़ी तरक्की हो गई है इस मुल्क में बड़े कमाल हो गए हैं कहते हैं कि गाँव क़स्बे और क़स्बे शहर हो गए हैं दुकानें शौरूम और बाज़ार मॉल हो गए हैं कहते हैं कि हाट वाला लाला अब बड़ा बिज़नेसमैन हो गया है लेकिन वो फेरी लगाने वाले करमू का क्या ? जिसकी टाँगें पत्थर हो गयीं फेरी लगा लगा कर जिसके गले में ही बैठ गई उसकी ऊँचीं कड़क आवाज़ गलियों में आवाज़ें लगा लगा कर जिसने बढ़ा लिए अपने सफ़ेद दाढ़ी और सफ़ेद बाल शायद कुछ पैसे बचाने के लिए और उस तीरथ नाई का क्या ? जो आज भी बैठा है वहीं उसी चौंक में उसी पेड़ के नीचे वही एक कुर्सी और एक शीशा दो कैंची दो कंघी आज भी उसके वही औज़ार हैं और वही उसके ग्राहक हैं वह राजू रिक्शे वाला जिसे बीस रुपये देना आज भी ज़्यादा लगता है स्कूल वाली टीचर और बैंक वाली क्लर्क मैडम को माना कि अब उसके पास रिक्शे की जगह आ गया ई-रिक्शा अब पैडल ना मारने की वजह से उसकी चप्पल का स्ट्रैप नहीं निकलता लेकिन चप्पल
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