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Showing posts from March, 2020

QAID

यह ख़त अपने सबसे अज़ीज़ के नाम.... सबसे पहले तो माफ़ करना बहुत देर के बाद कुछ लिख रहा हूँ वो क्या है न कि बिन जवाब के कुछ लिखना बहुत मुश्किल होता है , लेकिन अब लिखने की वजह कुछ और है अब कहने को बात कुछ और है अब मेरे इस मुल्क की हवा कुछ और है अब मेरे इस शहर के हालात कुछ और हैं , अब यहाँ की गलियाँ पहले जैसे आबाद नहीं हैं यहाँ के लोग पहले जैसे आज़ाद नहीं हैं हम सब यहाँ अब क़ैद में हैं । अगर कुछ आज़ाद है तो वो सब परिंदे जिन्हें हम क़ैद में रखते थे तुम्हें याद है वो पिंजरे में क़ैद परिंदा जो तुम्हारे पड़ोस के एक घर में था जिसे देख तुम अक्सर कहती थी कि वो मुझसा दिखता है ख्यालों से आज़ाद लेकिन हालातों में क़ैद अब वो परिंदा खुले आसमान में आज़ाद है और उस घर के लोग सब क़ैद में हैं हम सब यहाँ अब क़ैद में हैं । मुझे आज भी याद है बारिश के बाद तुम वो दूर हल्के-हल्के धुंदले दिखने वाले पहाड़ देखा करती थी अब हमारी छत से वो पहाड़ हर वक़्त दिखते हैं उनके ऊपर गिरी वो सफ़ेद बर्फ भी दिखती है , कल तो बारिश के बाद सतरंगी इंद्रधनुष भी दिखा था एक दम पास और एक दम साफ़ जैसे हाथ से छूह ...