हर बार जब भी अंधविश्वास में अँधे लोगों द्धारा किसी इंसान को भगवान् कहते सुनता हूँ तो बड़ी हैरानी होती है और फिर उसी भगवान् पर कोई इल्ज़ाम सुनता हूँ तो ज़्यादा हैरानी होती है। लेकिन सबसे बड़ी हैरानी तब होती है जब अँधे लोग अपने बलात्कारी भगवान् को बचाने के लिए किसी भी हद तक गिर जाते हैं। इस बार भी वही सब हुआ और इस बार अपने ज़ेहन में उठे उभालों को किसी एक मासूम लड़की की नज़र से समझने और लिखने की कोशिश की है। उमीद है आप सबके ज़ेहन में मेरी सोच पहुँच पायेगी। सिर्फ कपड़े फाड़ के या ज़मीन पे लिटा के , हाथ-पैर बाँध के या मुँह में कपड़ा घुसा के , सिर्फ जिस्म नोच के या अंग लताड़ के बलात्कार नहीं होता , हर रोज़ इन हवस भरी नज़रों की ताड़ से मेरा बलात्कार होता है। हर रोज़ इंसानों के हाथों इंसानियत की मार से मेरा बलात्कार होता है। सिर्फ गैर मर्दों से या गली के गुंडों से , अनजान बे-दर्दों से या ज़ालिम दरिंदों से , सिर्फ बे-इल्म बाशिंदों से या बे-तालीम दहशतगर्दों से बलात्कार नहीं होता , हर रोज़ शाम को गोद में बिठाके अंकल के प्यार से मेरा बलात्कार होता है। हर रोज़ इंसानों के हाथों इंसानियत की मार से मेरा बल
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