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Showing posts from August, 2017

BALATKAAR

हर बार जब भी अंधविश्वास में अँधे लोगों द्धारा किसी इंसान को भगवान् कहते सुनता हूँ तो बड़ी हैरानी होती है और फिर उसी भगवान् पर कोई इल्ज़ाम सुनता हूँ तो ज़्यादा हैरानी होती है।  लेकिन सबसे बड़ी हैरानी तब होती है जब अँधे लोग अपने बलात्कारी भगवान् को बचाने के लिए किसी भी हद तक गिर जाते हैं। इस बार भी वही सब हुआ और इस बार अपने ज़ेहन में उठे उभालों को किसी एक मासूम लड़की की नज़र से समझने और लिखने की कोशिश की है। उमीद है आप सबके ज़ेहन में मेरी सोच पहुँच पायेगी। सिर्फ कपड़े फाड़ के या ज़मीन पे लिटा के , हाथ-पैर बाँध के या मुँह में कपड़ा घुसा के , सिर्फ जिस्म नोच के या अंग लताड़ के बलात्कार नहीं होता , हर रोज़ इन हवस भरी नज़रों की ताड़ से मेरा बलात्कार होता है। हर रोज़ इंसानों के हाथों इंसानियत की मार से मेरा बलात्कार होता है। सिर्फ गैर मर्दों से या गली के गुंडों से , अनजान बे-दर्दों से या ज़ालिम दरिंदों से , सिर्फ बे-इल्म बाशिंदों से या बे-तालीम दहशतगर्दों से बलात्कार नहीं होता , हर रोज़ शाम को गोद में बिठाके अंकल के प्यार से मेरा बलात्कार होता है। हर रोज़ इंसानों के हाथों इंसानियत की मार से मेरा बल

HASRAT

मत पूछो कि क्या हसरत है मेरी , हसरतें जताऊँ यह ना फ़ितरत है मेरी , जताने से मिल जाये मुझे चाहत जो मेरी , खुदी को जानता हूँ यह ना किस्मत है मेरी।  मत पूछो कि क्या हसरत है मेरी ...  मत पूछो कि मेरे दिल में उभार क्या हैं , मन में ख्याल क्या हैं और ज़हन में सवाल क्या हैं , उबल आया जो कभी भवालों का लावा , मेरी मुहब्बत भी लगेगी कि नफ़रत है मेरी।  मत पूछो कि क्या हसरत है मेरी ...  मत पूछो कि मैं चुप सा क्यों हूँ , अँधेरों में गुप्त सा क्यों हूँ , यह चारों ओर घूमती सवालिया नज़रों से छुपता क्यों हूँ , इल्म है कि ज़ुबान खुली तो आवाज़ भी होगी , सो चुप ही रहने दो बस इतनी सी दरख़्वास्त है मेरी। मत पूछो कि क्या हसरत है मेरी ... मत पूछो कि अब पहले जैसे बेबाक ख्यालों की रिहाई क्यों नहीं है , पहले जैसे कलम की लिखाई क्यों है , लफ़्ज़ों की गहराई क्यों नहीं है , दफ़्न हो गया वो पहले वाला मिनी कहीं , अब तो बस सांसें चलती रहे यही मुशक्कत है मेरी।  मत पूछो कि क्या हसरत है मेरी , हसरतें जताऊँ यह ना  फ़ितरत है मेरी ।।  ( Mat pucho ke kya hasrat hai meri ,   Hasratein jatau

AZADI

एक आज़ाद मुल्क का आज़ाद नागरिक होने के नाते मुझे भी हक़ है , कि मैं भी जी सकता हूँ अपनी आज़ाद ज़िन्दगी अपने आज़ाद ख्यालों के साथ। कि एक छोटी सी बात है जो हज़ार बार समझा चूका हूँ , फिर क्यों इतना तंग करते हो फज़ूल सवालों के साथ। कि जो टूटे सपनों के तिनके फसे पड़े हैं  मेरी आँखों में ,निकलेंगे तो सिर्फ अश्कों से , चाहे लाख कोशिश करलो समुन्द्र के उछालों के साथ। कि जुगनू हूँ तो अँधेरी रात में ही दिखूँगा , तो फिर क्यों ढूंढ रहे हो मुझे सूरज के उजालों के साथ। कि एक अन-सुलझी सी पहेली हूँ , यह जानते हुए भी क्यों उलझते हो मेरे मन के बवालों के साथ। सच कहूँ तो यह कहना-सुनाना मेरे बस का नहीं , तो भुला देना तुम भी यह सब अपने ही ख्यालों के साथ। पर आज़ाद मुल्क का आज़ाद नागरिक होने के नाते सिर्फ आज़ादी चाहता हूँ , अगर अब भी समझ ना पाओ मेरी मर्ज़ी , तो जला देना मुझे उसी आज़ादी की मिशालों के साथ। एक आज़ाद मुल्क का आज़ाद नागरिक होने के नाते मुझे भी हक़ है , कि मैं भी जी सकता हूँ अपनी आज़ाद ज़िन्दगी अपने आज़ाद ख्यालों के साथ। + (Ek azad mulak ka azad nagrik hone ke naate mujhe bhi haq hai ,  Ki ma