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Showing posts from October, 2018

AE ZINDAGI

ऐ ज़िंदगी क्या बताऊँ ! तुझे ज़िंदगी भर कैसे जीता रहा हूँ मैं , दुनिया भर से मिलता रहा लेकिन तुझी से बिछड़ा रहा हूँ मैं , ऐ ज़िंदगी क्या बताऊँ ! तुझे ज़िंदगी भर कैसे जीता रहा हूँ मैं । एक दौड़ थी ज़माने की और जी-जान से भागा मैं , सारी दुनिया से अव्वल लेकिन खुदी से पिछड़ा रहा हूँ मैं , ऐ ज़िंदगी क्या बताऊँ ! तुझे ज़िंदगी भर कैसे जीता रहा हूँ मैं । लोगों के मजमों में अपना एक नाम सा कर लिया , हर जलसे की रौनक लेकिन दिल की महफ़िल में उजड़ा रहा हूँ मैं , ऐ ज़िंदगी क्या बताऊँ ! तुझे ज़िंदगी भर कैसे जीता रहा हूँ मैं । मेरी कलम परिंदा और कागज़ आसमान था मेरा , अल्फ़ाज़ फड़-फड़ाते रहे मेरे लेकिन लकीरों में लड़-खड़ाता रहा हूँ मैं , ऐ ज़िंदगी क्या बताऊँ ! तुझे ज़िंदगी भर कैसे जीता रहा हूँ मैं । समझने की कोशिश में तुझे जीना ही भूल गया मैं , तुझे सुलझाता रहा लेकिन खुदी में कहीं उलझा रहा हूँ मैं , ऐ ज़िंदगी क्या बताऊँ ! तुझे ज़िंदगी भर कैसे जीता रहा हूँ मैं । ऐ ज़िंदगी क्या बताऊँ ! तुझे ज़िंदगी भर कैसे जीता रहा हूँ मैं ।।

MANN

आज कुछ लिखने का मन तो है लेकिन अल्फ़ाज़ नहीं है , महफ़िल भी है अंदाज़ भी है लेकिन मिज़ाज़ नहीं है , आज कुछ लिखने का मन तो है लेकिन अल्फ़ाज़ नहीं है। मन तो है कि लिखदूँ आज एक गीत जिसे गुनगुनाता रहूँ मैं तमाम उम्र , उसकी तर्ज़ भी है साज़ भी है लेकिन आवाज़ नहीं है , आज कुछ लिखने का मन तो है लेकिन अल्फ़ाज़ नहीं है। मन तो है कि लिखदूँ वो सारे टूटे सपने जिनके तिन्के फसे हैं अभी भी आँखों में कहीं , आज भी वो ख्वाब तो है ख्याल भी है लेकिन आस नहीं है , आज कुछ लिखने का मन तो है लेकिन अल्फ़ाज़ नहीं है। मन तो है कि लिखदूँ वो रिश्ते सारे जो निभा कर भी बने नहीं जो बन कर भी निभे नहीं , वो लिखना जरूरी भी है मजबूरी भी है लेकिन रिवाज़ नहीं है , आज कुछ लिखने का मन तो है लेकिन अल्फ़ाज़ नहीं है। मन तो है कि लिखदूँ आज मन ही अपना जो छुपा रहा आज तक मन ही मन में कहीं , जिसमें कुछ चेहरे भी हैं कुछ नाम भी हैं लेकिन अब ज़ज़्बात नहीं है , आज कुछ लिखने का मन तो है लेकिन अल्फ़ाज़ नहीं है ।।