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SAPNE - AN OPEN LETTER

आज बहुत दिनों बाद कुछ लिखने लगा हूँ।  कुछ अपने दिल से , अपने इस छोटे से जीवन के अनुभव से , अपने लिए और हर एक शख़्स के लिए जिस तक भी मेरे यह अल्फ़ाज़ पहुँच पाएंगे , जो भी इसे पढ़ेगा। लेकिन आज कोई कविता या कोई कहानी नहीं लिख रहा हूँ , आज बस अपने आज़ाद ख्याल लिख रहा हूँ , अपने आज़ाद अल्फ़ाज़ लिख रहा हूँ और आज के यह अलफ़ाज़ किसी समाज या किसी रिवाज़ के बारे में नहीं हैं , आज के यह अल्फ़ाज़ हम सबकी इन दो आँखों से देखे सपनों के बारे में हैं , उन सपनों को पाने के लिए हमारे दिल में पलते जुनून के बारे में हैं। यह सपने वो सपने नहीं हैं जो हर रात को नींद में सो के देखे जाते हैं और सुबह होते ही रात के अँधेरे के साथ भुला दिए जाते हैं , यह सपने वो सपने नहीं हैं जो हर रात अपना रूप बदल लेते हैं।  यह सपने वो सपने हैं जो एक बार देखने के बाद तमाम उम्र सोने नहीं देते , जो दोबारा कोई और सपना देखने नहीं देते, जो अपने ही रूप में आपकी ज़िन्दगी बदल देते हैं।  यह सपने वो सपने नहीं जो आपको डरा के उठा देते हैं , यह वो हसीन सपने हैं जो आपको जीने की वजह देते हैं एक मक़सद देते हैं।  लेकिन यहाँ मेरा तात्पर्य इन सपनों को ब्यान करना नहीं हैं , बल्कि इन सपनों को हर हाल में पूरा करने से है। यह सपने जो आपसे दिन में मेहनत करवाते हैं और रात को सोने नहीं देते ,  इन्हें सिर्फ दिन के आराम के लिए या रात में चैन की नींद के लिए कुरबान मत करिये , क्यूँकि कुछ चंद दिनों के आराम और रात की नींद के बाद जब दिन-रात एक जैसे साये में होते हैं तो यकीन करना साँस लेना भी मुश्किल लगता है। कृप्या इन सपनों को किसी भी अपने या किसी बेगाने पर हार मत देना , क्यूँकि फिर कोई भी जीत इस हार की भरपाई नहीं कर पायेगी।  इन अनमोल सपनों को किसी के लिए भी (हाँ , किसी का मतलब किसी के लिए भी ) निशावर मत करना , क्यूँकि दुनिया के हर इन्सान या हर रिश्ते के लिए आप उतनी देर तक सही हो जब तक आप उसके अनुसार ज़िन्दगी जी रहे हो, जैसे ही आप अपनी ईशा से जीना शुरू करोगे तो आप सबकी नज़रों में गलत हो जाओगे।  और जब आपको एक ना एक दिन गलत होना ही है तो फिर वो गलती अपने सपनों के लिए आज ही कर लेना , उसके लिए कल का इंतज़ार मत करना।  क्यूँकि फिर वो कल तो आपके पास होगा पर शायद आपके सपने या फिर उन सपनों को पूरा करने का जुनून नहीं होगा , और शायद उस कल में आप खुद आज वाले आप नहीं होंगे। आखिर में सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि इन अल्फ़ाज़ों का लावा उगलने से मेरे बेबस दिल को शायद ही कुछ राहत मिलेगी , लेकिन अगर इन अल्फ़ाज़ों से किसी एक सपने की जान भी बच जाये तो शायद किसी बहार में लिपटे पहाड़ को जवालामुखी बनने से बचाया जा सकता है। तो आप सबसे एक ही निवेदन है कि किसी के लिए भी और किसी भी कीमत पर अपने सपनों से समझोता मत करना , क्यूँकि इस जहान में दुआओं के बद-दुआओं में बदलने में देर नहीं लगती। और हाँ यह सब लिखते हुए मेरे दिमाग में चल रही महान कवि 'पाश' की नज़म 'सपने' की कुछ पंक्तियाँ भी आप सबके साथ सांझी करता हूँ -
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                                                    सपने हर किसी को नहीं आते
                                                    सपनों के लिए लाज़मी है ,
                                                    झेलनेवाले दिलों का होना
                                                    नींद की नज़र होनी लाज़मी है
                                                    इसलिए सपने हर किसी को नहीं आते
Aaj bahut baad kuch likhne lga hun . Kuch apne dil se , apne is chote se jeewan ke anubhav se , apne liye aur har ek shakhs ke liye jis tak bhi mere yeh alfaz pahunch payenge , jo bhi ise padhega . Lekin aaj koi kavita ya koi kahani nhin likh rha hun , aaj bas apne azaad khyal likh rha hun , apne azaad alfaz likh rha hun aur aaj ke yeh alfaz kisi samaaz ya kisi riwaaz ke bare mein nahi hain , aaj ke yeh alfaz hum sabki in do ankhon se dekhe sapno ke bare mein hain , un sapnon ko paane ke liye hamare dil  mein palte junoon ke bare mein hain . Yeh sapne wo sapne nahi hin jo har raat ko neend mein so ke dekhe jaate hain aur subah hote hi raat ke andhere ke sath bhula diye jaate hain , yeh sapne wo sapne nahi jo har raat apna roop badal lete hain . Yeh sapne wo sapne hain jo ek baar dekhne ke baad tamaam umar sone nahi dete , jo dobara koi aur sapna dekhne nahi dete , jo apne hi roop mein apki zindagi badal dete hain . Yeh sapne wo sapne nahi jo apko dra ke utha dete hain , yeh wo haseen sapne hain jo apko jeene ki vajah dete hain ek maksad dete hain . Lekin yahan mera tatparya in sapno ko byan karna nahi hai , balki in sapno ko har haal mein pura karne se hai .Yeh sapne jo aapse mein mein mehnat karvate hain aur raat ko sone nahi dete , inhein sirf din ke araam ke liye ya raat mein chain ki neend ke liye kurbaan mat kariye , kyuki kuch chand dino ke araam aur raat ki neend ke baad jab din-raat ek jaise saaye mein hote hain to yakeen karna saans lena bhi mushkil lagta hai . Kripya in sapno ko kisi bhi apne ya kisi begaane par haar mat dena , kyuki fir koi bhi jeet is haar ki bharpayi nahi kar payegi . In anmol sapno ko kisi ke liye bhi ( haan , kisi ka matlab kisi ke liye bhi ) nishavar mat karna, kyuki duniya ke har insaan ya har rishte ke liye aap utni hi der tak sahi ho jab tak aap uske anusar zindagi jee rhe ho , jaise hi aap apni isha se jeena shuru karoge to aap sabki nazron meingalat ho jaoge . Aur jab aapko ek na ek din galat hona hi hai to fir wo galti apne sapno ke liye aaj hi kar lena , uske liye kal ka intezar mat karna . Kyuki fir wo kal to aapke paas hoga par shayad apke sapne ya fir un sapno ko pura karne ka junoon nahi hoga , aur shayad us kal mein aap khud aaj vale aap nahi honge. Akhir mein sirf itna kehna chahta hun ki in alfazon ka laava ugalne se mere bebas dil ko shayad hi kuch rahat milegi , lekin agar in alfazon se kisi ek sapne ki jaan bhi bach jaye to shayad kisi bahaar mein lipte pahaad ko jawalamukhi ban'ne se bachaya ja sakta hai . To aap sabse ek hi nivedan hai ki kisi ke liye bhi aur kisi bhi keemat par sapno se samjhota mat karna , kyuki is jahaan mein dua'on ke bad-dua'on mein badalne mein der nahi lagti.
Aur haan yeh sab likhte huye mere dimag mein chal rahi mahaan kavi 'Paash' ki nazam 'Sapne' ki kuch panktiyan bhi aap sabse saanjhi karta hun -
                                                 Sapne har kisi ko nahi aate
                                                 Sapno ke liye lazmi hai ,
                                                 Jhelnevale dilon ka hona
                                                 Neend ki nazar honi lazmi hai
                                                 Isliye sapne har kisi ko nahi aate

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NA MANZOORI

ਮੈਂ ਸੁਣਿਆ ਲੋਕੀਂ ਮੈਨੂੰ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਦੱਸਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਬੁੱਝਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਰਾਜ਼ ਸੱਚ ਖੋਲਣ ਵਾਲਾ  ਤੇ ਕੁਝ ਅਲਫਾਜ਼ਾਂ ਪਿੱਛੇ ਲੁੱਕਿਆ ਕਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਪਰ ਸੱਚ ਦੱਸਾਂ ਮੈਨੂੰ ਕੋਈ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦਾ  ਕਿ ਕੋਈ ਮੇਰੇ ਬਾਰੇ ਕੀ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਕੀ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਕਹਿੰਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਕੋਈ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਨਹੀਂ ਮੰਨਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਅੱਜ ਤਕ ਕਦੇ ਇਹ ਤਾਰੇ ਬੋਲਦੇ ਨਹੀਂ ਸੁਣੇ  ਚੰਨ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੱਲ ਵੇਖ ਸ਼ਰਮਾਉਂਦੇ ਨਹੀਂ ਦੇਖਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਜ਼ੁਲਫ਼ਾਂ `ਚੋਂ ਫੁੱਲਾਂ ਵਾਲੀ ਮਹਿਕ ਜਾਣੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਵੰਗਾਂ ਨੂੰ ਗਾਉਂਦੇ ਸੁਣਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਨੰਗੀਆਂ ਹਿੱਕਾਂ `ਚੋਂ  ਉੱਭਰਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਵਾਲਾ ਨਜ਼ਾਰਾ ਤੱਕਿਆ ਏ  ਨਾ ਹੀ ਤੁਰਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕਦੇ ਤਰਜ਼ ਫੜੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਸਾਹਾਂ ਦੀ ਤਾਲ `ਤੇ ਕਦੇ ਹੇਕਾਂ ਲਾਈਆਂ ਨੇ  ਪਰ ਮੈਂ ਖੂਬ ਸੁਣੀ ਏ  ਗੋਹੇ ਦਾ ਲਵਾਂਡਾ ਚੁੱਕ ਕੇ ਉੱਠਦੀ ਬੁੜੀ ਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕੜਾਕ  ਤੇ ਨਿਓਂ ਕੇ ਝੋਨਾ ਲਾਉਂਦੇ ਬੁੜੇ ਦੀ ਨਿਕਲੀ ਆਹ  ਮੈਂ ਦੇਖੀ ਏ  ਫਾਹਾ ਲੈ ਕੇ ਮਰੇ ਜੱਟ ਦੇ ਬਲਦਾਂ ਦੀ ਅੱਖਾਂ `ਚ ਨਮੋਸ਼ੀ  ਤੇ ਪੱਠੇ ਖਾਂਦੀ ਦੁੱਧ-ਸੁੱਕੀ ਫੰਡਰ ਗਾਂ ਦੇ ਦਿਲ ਦੀ ਬੇਬਸੀ  ਮੈਂ ਸੁਣੇ ਨੇ  ਪੱਠੇ ਕਤਰਦੇ ਪੁਰਾਣੇ ਟੋਕੇ ਦੇ ਵਿਰਾਗੇ ਗੀਤ  ਤੇ ਉਸੇ ਟੋਕੇ ਦੀ ਮੁੱਠ ਦੇ ਢਿੱਲੇ ਨੱਟ ਦੇ ਛਣਛਣੇ  ਮੈਂ ਦੇਖਿਆ ਏ 

अर्ज़ी / ARZI

आज कोई गीत या कोई कविता नहीं, आज सिर्फ एक अर्ज़ी लिख रहा हूँ , मन मर्ज़ी से जीने की मन की मर्ज़ी लिख रहा हूँ । आज कोई ख्वाब  , कोई  हसरत  या कोई इल्तिजा नहीं , आज बस इस खुदी की खुद-गर्ज़ी लिख रहा हूँ ,  मन मर्ज़ी से जीने की मन की मर्ज़ी लिख रहा हूँ ।  कि अब तक जो लिख-लिख कर पन्ने काले किये , कितने लफ्ज़ कितने हर्फ़ इस ज़ुबान के हवाले किये , कि कितने किस्से इस दुनिआ के कागज़ों पर जड़ दिए , कितने लावारिस किरदारों को कहानियों के घर दिए , खोलकर देखी जो दिल की किताब तो एहसास हुआ कि अब तक  जो भी लिख रहा हूँ सब फ़र्ज़ी लिख रहा हूँ। लेकिन आज कोई दिल बहलाने वाली झूठी उम्मीद नहीं , आज बस इन साँसों में सहकती हर्ज़ी लिख रहा हूँ , मन मर्ज़ी से जीने की मन की मर्ज़ी लिख रहा हूँ । कि आवारा पंछी हूँ एक , उड़ना चाहता हूँ ऊँचे पहाड़ों में , नरगिस का फूल हूँ एक , खिलना चाहता हूँ सब बहारों में , कि बेबाक आवाज़ हूँ एक, गूँजना चाहता हूँ खुले आसमान पे , आज़ाद अलफ़ाज़ हूँ एक, गुनगुनाना चाहता हूँ हर ज़ुबान पे , खो जाना चाहता हूँ इस हवा में बन के एक गीत , बस आज उसी की साज़-ओ-तर्ज़ी लिख रहा हूँ। जो चुप-

BHEED

भीड़    इस मुल्क में    अगर कुछ सबसे खतरनाक है तो यह भीड़ यह भीड़ जो ना जाने कब कैसे  और कहाँ से निकल कर आ जाती है और छा जाती है सड़कों पर   और धूल उड़ा कर    खो जाती है उसी धूल में कहीं   लेकिन पीछे छोड़ जाती है   लाल सुरख गहरे निशान   जो ता उम्र उभरते दिखाई देते हैं   इस मुल्क के जिस्म पर लेकिन क्या है यह भीड़   कैसी है यह भीड़    कौन है यह भीड़   इसकी पहचान क्या है   इसका नाम क्या है   इसका जाति दीन धर्म ईमान क्या है   इसका कोई जनम सर्टिफिकेट नहीं हैं क्या   इसका कोई पैन आधार नहीं है क्या   इसकी उँगलियों के निशान नहींं हैं क्या इसका कोई वोटर कार्ड या    कोई प्रमाण पत्र नहीं हैं क्या   भाषण देने वालो में   इतनी चुप्पी क्यों है अब इन सब बातों के उत्तर नहीं हैं क्या उत्तर हैं उत्तर तो हैं लेकिन सुनेगा कौन सुन भी लिया तो सहेगा कौन और सुन‌कर पढ़कर अपनी आवाज़ में कहेगा कौन लेकिन अब लिखना पड़ेगा अब पढ़ना पड़ेगा  कहना सुनना पड़ेगा सहना पड़ेगा और समझना पड़ेगा कि क्या है यह भीड़ कैसी है यह भीड़  कौन है यह भीड़ कोई अलग चेहरा नहीं है इसका  कोई अलग पहरावा नहीं है इसका कोई अलग पहचान नहीं है इसकी क