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MERA JAHAAN

यह कुछ पंक्तियाँ पुराने पन्नों में से हैं , जो कि मेरे दिल के काफी करीब हैं।  क़िताब तभी सम्पूर्ण होती है जब उसमें पहले से आखिरी तक सभी पन्नें मौज़ूद हों।

मुझे क्या पता क्या तेरा है  क्या मेरा ,
मैं हूँ सारे जहान का , मेरा सारा जहान है तेरा ,
अगर हो जाये मुझपे बस मेरा ,
तो बन के फ़िज़ा तेरी ज़ुल्फ़ों से खेलूँ ,
बन के ख़िज़ा तेरे ग़मों को झेलूँ ,
बन के पँछी जगह तेरे आँगन में लेलूँ ,
और जब भी करे तू नमाज़ ,
देखूँ तेरा रब सा सच्चा चेहरा ,
मुझे क्या पता क्या तेरा है  क्या मेरा ,
मैं हूँ सारे जहान का , मेरा सारा जहान है तेरा ।

मैं हूँ इस जहान का जिस में खुद भी मैं शामिल नहीं ,
क्यूँकि जिसका तू ना हिस्सा वो मेरे लिए क़ामिल नहीं ,
और तू बने इस जहान का , ना यह तेरी हस्ती के काबिल नहीं ,
वैसे तो मैं इतना फ़ाज़िल नहीं , पर अगर हो जाये मुझपे हक़ मेरा ,
तो इस रूह का एक जहान बनादुँ ,
इस जिस्म का एक मकान बनादुँ ,
जहाँ भी रखे तू कदम , दिल का पायदान बिछादूँ ,
और महफूज़ रहे तू अपने इस जहान में ,
लगादूँ इन दो आँखों का पहरा ,
मुझे क्या पता क्या तेरा है  क्या मेरा ,
मैं हूँ सारे जहान का , मेरा सारा जहान है तेरा ।

( Mujhe kya pta kya tera hai kya mera ,
  Main hu sare jahaan ka , mera sara jahaan hai tera ,
  Agar ho jaye mujhpe bas mera ,
  To ban ke fiza teri zulfon se khelun ,
  Ban ke khiza tere ghamon ko jhelun ,
  Ban ke panchi jagah tere aangan mein lelun ,
  Aur jab bhi kare tu namaz ,
  Dekhun tera rab sa sacha chehra ,
  Mujhe kya pta kya tera hai kya mera ,
  Main hu sare jahaan ka , mera sara jahaan hai tera ..

  Main hu is jahaan ka jis mein khud bhi main shamil nahi ,
  Kyuki jiska tu na hissa wo mere liye kamil nahi ,
  Aur tu bane is jahaan ka , Na yeh teri hasti ke kabil nahi ,
  Veses to main itna fazil nahi , par agar ho jaye mujhpe haq mera ,
  To is rooh ka ek jahaan bnadu ,
  Is jism ka ek makaan bnadu ,
  Jahan bhi rakhe tu kadam , Dil ka paidaan bichadu ,
  Aur mehfuz rahe tu apne is jahaan mein ,
  Lgadu in do ankhon ka pehra ,
  Mujhe kya pta kya tera hai kya mera ,
  Main hu sare jahaan ka , mera sara jahaan hai tera .., )


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