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HASRAT

मत पूछो कि क्या हसरत है मेरी ,
हसरतें जताऊँ यह ना फ़ितरत है मेरी ,
जताने से मिल जाये मुझे चाहत जो मेरी ,
खुदी को जानता हूँ यह ना किस्मत है मेरी। 
मत पूछो कि क्या हसरत है मेरी ... 

मत पूछो कि मेरे दिल में उभार क्या हैं ,
मन में ख्याल क्या हैं और ज़हन में सवाल क्या हैं ,
उबल आया जो कभी भवालों का लावा ,
मेरी मुहब्बत भी लगेगी कि नफ़रत है मेरी। 
मत पूछो कि क्या हसरत है मेरी ... 

मत पूछो कि मैं चुप सा क्यों हूँ , अँधेरों में गुप्त सा क्यों हूँ ,
यह चारों ओर घूमती सवालिया नज़रों से छुपता क्यों हूँ ,
इल्म है कि ज़ुबान खुली तो आवाज़ भी होगी ,
सो चुप ही रहने दो बस इतनी सी दरख़्वास्त है मेरी।
मत पूछो कि क्या हसरत है मेरी ...

मत पूछो कि अब पहले जैसे बेबाक ख्यालों की रिहाई क्यों नहीं है ,
पहले जैसे कलम की लिखाई क्यों है , लफ़्ज़ों की गहराई क्यों नहीं है ,
दफ़्न हो गया वो पहले वाला मिनी कहीं ,
अब तो बस सांसें चलती रहे यही मुशक्कत है मेरी। 
मत पूछो कि क्या हसरत है मेरी ,
हसरतें जताऊँ यह ना  फ़ितरत है मेरी ।। 

( Mat pucho ke kya hasrat hai meri ,
  Hasratein jataun yeh na fitrat hai meri ,
  Jatane se mil jaye mujhe chahat jo meri ,
  Khudi ko jaanta hu yeh na kismat hai meri .
  Mat pucho ke kya hasrat hai meri ...

  Mat pucho ke mere dil mein ubhaar kya hain,
  Mann mein khyaal kya hain aur zehan mein sawaal kya hain,
  Ubal aya jo kbi bhawaalon ka laava ,
  Meri mohabbat bhi lgegi ke nafrat hai meri .
  Mat pucho ke kya hasrat hai meri ...

  Mat pucho ke main chup sa kyu hu , andheron mein gupt sa kyu hu ,
  Yeh charon aur ghumti sawaaliya nazron se chhupta kyu hu ,
  Ilam hai ke zuban khuli to awaaz bhi hogi ,
  So chup hi rehne do bas itni si darkhwast hai meri .
  Mat pucho ke kya hasrat hai meri ...

  Mat pucho ke ab pehle jaise bebak khyalon ki rihayi kyu nahi hai ,
  Pehle jaise kalam ki likhayi kyu nahi hai, lafzon ki gehrayi kyu nahi hai ,
  Dafan ho gya wo pehle vala Mini kahin,
  Ab to bas saansein chalti rhe yahi mushakkat hai meri .
  Mat pucho ke kya hasrat hai meri ,
  Hasratein jataun yeh na fitrat hai meri .... )

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ਮੈਂ ਸੁਣਿਆ ਲੋਕੀਂ ਮੈਨੂੰ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਦੱਸਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਬੁੱਝਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਰਾਜ਼ ਸੱਚ ਖੋਲਣ ਵਾਲਾ  ਤੇ ਕੁਝ ਅਲਫਾਜ਼ਾਂ ਪਿੱਛੇ ਲੁੱਕਿਆ ਕਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਪਰ ਸੱਚ ਦੱਸਾਂ ਮੈਨੂੰ ਕੋਈ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦਾ  ਕਿ ਕੋਈ ਮੇਰੇ ਬਾਰੇ ਕੀ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਕੀ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਕਹਿੰਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਕੋਈ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਨਹੀਂ ਮੰਨਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਅੱਜ ਤਕ ਕਦੇ ਇਹ ਤਾਰੇ ਬੋਲਦੇ ਨਹੀਂ ਸੁਣੇ  ਚੰਨ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੱਲ ਵੇਖ ਸ਼ਰਮਾਉਂਦੇ ਨਹੀਂ ਦੇਖਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਜ਼ੁਲਫ਼ਾਂ `ਚੋਂ ਫੁੱਲਾਂ ਵਾਲੀ ਮਹਿਕ ਜਾਣੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਵੰਗਾਂ ਨੂੰ ਗਾਉਂਦੇ ਸੁਣਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਨੰਗੀਆਂ ਹਿੱਕਾਂ `ਚੋਂ  ਉੱਭਰਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਵਾਲਾ ਨਜ਼ਾਰਾ ਤੱਕਿਆ ਏ  ਨਾ ਹੀ ਤੁਰਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕਦੇ ਤਰਜ਼ ਫੜੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਸਾਹਾਂ ਦੀ ਤਾਲ `ਤੇ ਕਦੇ ਹੇਕਾਂ ਲਾਈਆਂ ਨੇ  ਪਰ ਮੈਂ ਖੂਬ ਸੁਣੀ ਏ  ਗੋਹੇ ਦਾ ਲਵਾਂਡਾ ਚੁੱਕ ਕੇ ਉੱਠਦੀ ਬੁੜੀ ਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕੜਾਕ  ਤੇ ਨਿਓਂ ਕੇ ਝੋਨਾ ਲਾਉਂਦੇ ਬੁੜੇ ਦੀ ਨਿਕਲੀ ਆਹ  ਮੈਂ ਦੇਖੀ ਏ  ਫਾਹਾ ਲੈ ਕੇ ਮਰੇ ਜੱਟ ਦੇ ਬਲਦਾਂ ਦੀ ਅੱਖਾਂ `ਚ ਨਮੋਸ਼ੀ  ਤੇ ਪੱਠੇ ਖਾਂਦੀ ਦੁੱਧ-ਸੁੱਕੀ ਫੰਡਰ ਗਾਂ ਦੇ ਦਿਲ ਦੀ ਬੇਬਸੀ  ਮੈਂ ਸੁਣੇ ਨੇ  ਪੱਠੇ ਕਤਰਦੇ ਪੁਰਾਣੇ ਟੋਕੇ ਦੇ ਵਿਰਾਗੇ ਗੀਤ  ਤੇ ਉਸੇ ਟੋਕੇ ਦੀ ਮੁੱਠ ਦੇ ਢਿੱਲੇ ਨੱਟ ਦੇ ਛਣਛਣੇ  ਮੈਂ ਦੇਖਿਆ ਏ 

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