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WOH

सुना है अाज कल वोह चुप चाप सा रहता है,  अाज तक जो सबकी आवाज़  था।
अाज कल वोह खुद खुदी से खुदगर्ज़  सा रहता है, आज तक जो सबसे इख़्लास था।
सुना है अाज कल वोह चुप चाप सा रहता है,  अाज तक जो सबकी अावाज़ था। 

सुना है इस्तीफा दे दिया ईशरतों से उसने, आज कल वोह हंसता नहीं है 
बशर है इसी दुनिया में वोह,  मगर कहीं भी बसता नहीं है 
सुना है आज कल वोह किसी की याद में रोता नहीं है
किसी भी हशर का असर आज कल उस पे होता नहीं है 
सुना है आज कल वोह बे-जान सा रहता है, आज तक जो ज़िंदादिली का अहसास था। 
सुना है अाज कल वोह चुप चाप सा रहता है,  अाज तक जो सबकी अावाज़ था। 

सुना है ज़ज़्बों को दफ़ना दिया उसने, आज कल लिखता नहीं है, गाता नहीं है
दिल के कैनवस को कहीं जला दिया उसने, बे-रंग किसी की तस्वीर बनाता नहीं है
सुना है सपनों से वैर हो गया कोई, आज कल रात भर सोता नहीं है
किसी भी नज़म का असर आज कल उस पे होता नहीं है
सुना है आज कल बे-ताल सा हो गया है, आज तक जो सुरीला साज़ था।
सुना है अाज कल वोह चुप चाप सा रहता है,  अाज तक जो सबकी अावाज़ था। 

सुना है उसे सुनने वाले उसके अज़ीज़ भी आज कल बेहरे हो गए हैं 
उसकी ज़ुबान की तरह ही उनकी आँखों पे भी चुप्पी के पहरे हो गए हैं 
सुना है अंजान हो गए उसके सारे, कोई भी उसकी सकूत में खोता नहीं  है
किसी पर भी उसकी खामोशी का असर आज कल होता नहीं है
सुना है मुँह मोड़ लेती है वोह महफिल भी आज कल उसे देख के, आज तक "मिनी" जिसका आज़ था। 
सुना है अाज कल वोह चुप चाप सा रहता है,  अाज तक जो सबकी अावाज़ था।  



(Suna hai aaj kal wo chup chaap sa rehta hai, Aaj tak jo sabki awaaz tha .
 Aaj kal wo khud khudi se khudgarz sa rehta hai, aaj tak jo sabse ikhlaas tha.
 Suna hai aaj kal wo chup chaap sa rehta hai, Aaj tak jo sabki awaaz tha ....

 Suna hai zazbon ko dafna dia usne, aaj kal likhta nahi hai, gaata nahi hai,
 Dil ke canvas ko kahin jala dia usne, be-rang kisi ki tasveer bnata nahi hai,
 Suna  hai sapno se vair ho gya koi, aaj kal raat bhar sota nahi hai,
 Kisi b nazam ka asar aaj kal uspe hota nahi hai,
 Suna hai aaj kal be-taal sa ho gya hai, aaj tak jo sureela saaz tha.
 Suna hai aaj kal wo chup chaap sa rehta hai, Aaj tak jo sabki awaaz tha ..

 Suna hai astifa de dia ishraton se usne, aaj kal wo hasta nahi hai, 
 Bashar hai issi dunia mein wo, magar kahin b basta nahi hai,
 Suna hai aaj kal wo kisi ki yaad mein rota nahi hai,
 Kisi b hashar ka asar aaj kal uspe hota nahi hai,
 Suna hai aaj kal wo be-jaan sa rehta hai, aaj tak jo jindadili ka ehsaas tha.
 Suna hai aaj kal wo chup chaap sa rehta hai, Aaj tak jo sabki awaaz tha ...

 Suna hai use sun`ne vale uske aziz b aaj kal behre ho gye hai,
 Uski zuban ki trah unki ankhon pe b chuppi ke pehre ho gye hai,
 Suna hai anjaan ho gye uske sare, koi b uski sakoot mein khota nahi hai,
 Kisi par b uski khamoshi ka asar aaj kal hota nahi hai,
 Suna hai muh morh leti hai wo mehfil b aaj kal use dekh ke, aaj tak Mini jiska aaz tha.
 Suna hai aaj kal wo chup chaap sa rehta hai, Aaj tak jo sabki awaaz tha ... )

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NA MANZOORI

ਮੈਂ ਸੁਣਿਆ ਲੋਕੀਂ ਮੈਨੂੰ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਦੱਸਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਬੁੱਝਣ ਵਾਲਾ  ਕੁਝ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਰਾਜ਼ ਸੱਚ ਖੋਲਣ ਵਾਲਾ  ਤੇ ਕੁਝ ਅਲਫਾਜ਼ਾਂ ਪਿੱਛੇ ਲੁੱਕਿਆ ਕਾਇਰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ  ਪਰ ਸੱਚ ਦੱਸਾਂ ਮੈਨੂੰ ਕੋਈ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦਾ  ਕਿ ਕੋਈ ਮੇਰੇ ਬਾਰੇ ਕੀ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਕੀ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਕਹਿੰਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਕੋਈ ਕਵੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਰ ਨਹੀਂ ਮੰਨਦਾ  ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਅੱਜ ਤਕ ਕਦੇ ਇਹ ਤਾਰੇ ਬੋਲਦੇ ਨਹੀਂ ਸੁਣੇ  ਚੰਨ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੱਲ ਵੇਖ ਸ਼ਰਮਾਉਂਦੇ ਨਹੀਂ ਦੇਖਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਜ਼ੁਲਫ਼ਾਂ `ਚੋਂ ਫੁੱਲਾਂ ਵਾਲੀ ਮਹਿਕ ਜਾਣੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਵੰਗਾਂ ਨੂੰ ਗਾਉਂਦੇ ਸੁਣਿਆ  ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀਆਂ ਨੰਗੀਆਂ ਹਿੱਕਾਂ `ਚੋਂ  ਉੱਭਰਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਵਾਲਾ ਨਜ਼ਾਰਾ ਤੱਕਿਆ ਏ  ਨਾ ਹੀ ਤੁਰਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕਦੇ ਤਰਜ਼ ਫੜੀ ਏ  ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਸਾਹਾਂ ਦੀ ਤਾਲ `ਤੇ ਕਦੇ ਹੇਕਾਂ ਲਾਈਆਂ ਨੇ  ਪਰ ਮੈਂ ਖੂਬ ਸੁਣੀ ਏ  ਗੋਹੇ ਦਾ ਲਵਾਂਡਾ ਚੁੱਕ ਕੇ ਉੱਠਦੀ ਬੁੜੀ ਦੇ ਲੱਕ ਦੀ ਕੜਾਕ  ਤੇ ਨਿਓਂ ਕੇ ਝੋਨਾ ਲਾਉਂਦੇ ਬੁੜੇ ਦੀ ਨਿਕਲੀ ਆਹ  ਮੈਂ ਦੇਖੀ ਏ  ਫਾਹਾ ਲੈ ਕੇ ਮਰੇ ਜੱਟ ਦੇ ਬਲਦਾਂ ਦੀ ਅੱਖਾਂ `ਚ ਨਮੋਸ਼ੀ  ਤੇ ਪੱਠੇ ਖਾਂਦੀ ਦੁੱਧ-ਸੁੱਕੀ ਫੰਡਰ ਗਾਂ ਦੇ ਦਿਲ ਦੀ ਬੇਬਸੀ  ਮੈਂ ਸੁਣੇ ਨੇ  ਪੱਠੇ ਕਤਰਦੇ ਪੁਰਾਣੇ ਟੋਕੇ ਦੇ ਵਿਰਾਗੇ ਗੀਤ  ਤੇ ਉਸੇ ਟੋਕੇ ਦੀ ਮੁੱਠ ਦੇ ਢਿੱਲੇ ਨੱਟ ਦੇ ਛਣਛਣੇ  ਮੈਂ ਦੇਖਿਆ ਏ 

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आज कोई गीत या कोई कविता नहीं, आज सिर्फ एक अर्ज़ी लिख रहा हूँ , मन मर्ज़ी से जीने की मन की मर्ज़ी लिख रहा हूँ । आज कोई ख्वाब  , कोई  हसरत  या कोई इल्तिजा नहीं , आज बस इस खुदी की खुद-गर्ज़ी लिख रहा हूँ ,  मन मर्ज़ी से जीने की मन की मर्ज़ी लिख रहा हूँ ।  कि अब तक जो लिख-लिख कर पन्ने काले किये , कितने लफ्ज़ कितने हर्फ़ इस ज़ुबान के हवाले किये , कि कितने किस्से इस दुनिआ के कागज़ों पर जड़ दिए , कितने लावारिस किरदारों को कहानियों के घर दिए , खोलकर देखी जो दिल की किताब तो एहसास हुआ कि अब तक  जो भी लिख रहा हूँ सब फ़र्ज़ी लिख रहा हूँ। लेकिन आज कोई दिल बहलाने वाली झूठी उम्मीद नहीं , आज बस इन साँसों में सहकती हर्ज़ी लिख रहा हूँ , मन मर्ज़ी से जीने की मन की मर्ज़ी लिख रहा हूँ । कि आवारा पंछी हूँ एक , उड़ना चाहता हूँ ऊँचे पहाड़ों में , नरगिस का फूल हूँ एक , खिलना चाहता हूँ सब बहारों में , कि बेबाक आवाज़ हूँ एक, गूँजना चाहता हूँ खुले आसमान पे , आज़ाद अलफ़ाज़ हूँ एक, गुनगुनाना चाहता हूँ हर ज़ुबान पे , खो जाना चाहता हूँ इस हवा में बन के एक गीत , बस आज उसी की साज़-ओ-तर्ज़ी लिख रहा हूँ। जो चुप-

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